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१.१४] जैनमिद्धांतसंग्रह। सर्व कुटुम जब रोवन लागे, तोहि रुलावें सारे।..: : ये अपशकुन करें सुन तोकू, तू यों क्यों न विचार ॥ अब परगतिके चालत बिरियां, धर्मध्यान उर आनो। .. चारों आराधन आराधो मोह तनो दुखहानो ॥ ५९॥ है निश्शल्य तनो सब दुविधा, आतमराम सुध्यावो। . जब परगतिको करहु पयानो, परमतत्व उर लावो ॥ मोह जालको काट पियारे ! अपनो रूप विचारो। मृत्यु मित्र उपकारी तेरो यों उर निश्चय धारो ॥ १६ ॥ दोहा-मृत्युमहोत्सव पाठको, पढ़ो सुनो बुधिवान। .
सम्घा घर नित सुख लहो, सूरचन्द शिवथान ॥५॥ पंच उभय नव एक नम, सम्वत सो सुखदाय । आश्विन श्यामा सप्तमी, कहो पाठ मनलाय ! ५५ ॥
(१३) समाधिमणा । .
(कवि द्यानतरायकृत।) . गौतमस्वामी वन्दों नामी मरण समाधि भला है। मैं कब पाऊं निशदिन ध्याऊं गाऊं वचन कला है ॥ .. देव धरम गुरु प्रीति महा दृढ़ सात व्यसन नहीं जाने । त्याग बाईस अभक्ष संयमी बारहव्रत नित ठाने ॥ १ ॥ चक्की उखरी चुल्लि बुहारी पानी त्रस न विराधे । बनिन करे परद्रव्य हरे नहिं छहो कर्म इम सोधे । : पूजा शास्त्र गुरुनकी सवा संयम- तप चहुँ दानी.।