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जैनसिद्धांतसंग्रह। यह उपसर्ग सहो घर थिरता, माराधन चितधारी। '
तो तुमरे जिय कौन दुःख है ! मृत्यु महोत्सव पारी ४.०|| • अभयघोष मुनि काकंदीपुर, महां वेदना पाई। .
वैरी चंडने सब तन छेदो, दुख दीनो अधिकाई॥ . यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी। . तो तुमरे जिय कौन दुःख है ! मृत्युमहोत्सव वारी ॥४ विद्युतचरने बहु दुख पायो, तौभी धीर न त्यागी। . शुममावनस प्राण तजे निज, धन्य आर बड़भागी॥. यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ! मृत्युमहोत्सव वारी ॥११॥ पुत्र चिलाती नामा मुनिको, बैरीने तन घातो। . मोटे मोटे कीट पड़े तन, तापर निन गुण रातो ॥ यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्युमहोत्सव बारी ॥४॥ दण्डक नामा मुनिकी देही, वाणन कर अरि भेदी। . वापर नेक डिगे नहिं वे मुनि, कर्ममहारिपु छेदी-॥. यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी। . . वो तुमरे जिय कौन दुःख है ! मृत्युमहोत्सव वारी ॥४॥ अमिनंदन मुनि आदि पांचस, धानी पेलि जु मारे । . . तौ मी श्रीमुनि समताधारी, पूरव कर्म विचारे ।।.. यह उपसर्ग सहो घर थिरतो, आराधन चित धारी ।. तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्युमहोत्सव वारी ॥१५॥ बाणक मुनि गोघरके मांही, मूंद अग्नि परिजालो। .