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जैनसिद्धांतसंग्रह। १०१ तो तुमरे प्रिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव वारी॥१४॥ श्रेणिकसुत गंगामें डूबो, तब जिननाम चितारे। . घर सलेखना परिग्रह छाड़ो, शुद्ध भाव उर धारे॥ यह उपसर्ग सहो घर थिरता आराधन चित धारी। . तौ तुमरे जिय कौन दुःख है ! मृत्यु महोत्सव वारी ॥३॥ समतभद्रमुनिवरके तनमें, क्षुधा वेदना आई। ता दुखमें मुनि नेक न डिगियो, चिन्ता निजगुण भाई ।। यह उपसर्ग सहो'घर थिरता, आराधन चितधारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव वारी ॥१६॥ ललितघटादिक तीस दोय मुनि कौशांबीतट जानो। नदीमें मुनि वडकर मूवे. सो दुख उन नहिं मानो। यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे निय कौन दुःख है ! मृत्यु महोत्मव बारी॥३७॥ धर्मघोष मुनि चम्पानगरी बारा ध्यान धर ठाढ़ो। . एक मासकी कर मर्यादा ता दुःख सह गाढ़ो॥ यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ! मृत्यु महोत्सव वारी ॥२८॥ श्रीदतमुनिको पूर्व जन्मको, वैरी देव सु आके। विक्रियकर दुख शीतंतनो सो, सहो साधु मन लाके ॥ यह उपसर्ग सही घर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे निय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव वारी ॥३९॥
वृषभसेन मुनि उष्ण शिलापर, ध्यान धरो मनलाई । • सर्यधाम अरु उष्ण पवनकी, वेदन सहि अधिकाई ॥ .