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कम नेतना और कर्म फल चेतना ये समारो जीवों के गण हैं। ममागे जीव जिस प्रकार के गग द्वेष भावों को करता है. उसी रूप और उम मात्रा में वह अगानि का भोक्ता है और वह अगांति ही दुःख है. जिम आज गग द्वंप की नीव ना में जीव के आचरण मे, आज का मनुष्य नीव्रता में भाग रहा है।
गामन में ग्न देगवामी तीव्रता में इन्द्रिय मुखों को प्राप्ति हेतु माधनों को एकत्रित करने म अन्य सभी जन मानुष के प्रति उतना ही नीव्रता में घणा को प्राप्त हो क्रियागील हो जाता है. और सरकारीकरण के व्यवमायो को बन्द कर मामन को उमकं भागोपभोग के माधनों की उपलब्धि न धन जुटाने का मजवर कर देना है और शामन देश क गरीब जनता पर नए-ना कर लाद. उनसे शासन म ग्त कर्मचारियों को चन जटाता है । यह क्रिया आज देश में भीषणना से क्रियाशील है। न नो न्द्रिय मुखों की प्राप्ति की होड मंद गति को प्राप्त है और न ही वह भविष्य में दष्टि गोचर ही है। इन्द्रिय सम्खों की प्राप्ति को ही आज का मानव मुग्य कहना और यह गग आज निन्य चरम मीमा लाघ रहा है । जंन मिद्धान्तम प्रकार के गग म आत्मा के परिणमन का ही कर्म चेतना करते हैं। मी चनना ही आत्मा म अगानि दनी है जिसे कम फल, चनना कहते है।
आत्मा म जब अगानि होती है नब मी आत्मा दुःग्वा को अनुभव करना है और पाच इन्द्रियो के. मृग्वा मे दु.म्ब को मिटाने में लगती है. किन्तु टन्द्रिय जनिन मुम्ब ना क्षणिक हान है और मे मुम्वा का परिणाम मम्व दुम्व हो दुख होता है क्योकि मनुष्य उनकी प्राप्ति हत आज मवंय हिमात्मक युद्ध दर म्तर पर कर रहा है और भीषणतम नाग करना हा भी पान न्द्रिय के मुखो का नवीकरण करने में असमर्थ है नथापि चतता नहीं और जबरन पाच टन्द्रियों के मुखों की नीव्रता का प्राप्त हो जाता है. नब उमगेर को भी क्षीण एवं व्याधि-ग्रम्न बना देता है. कि जिम गर म प्राय पर्यन्त उस आत्मा का वास होता है, और गर्गर म उत्पन्न ह व्याधियों का जीवन पर्यंत मा आत्मा भागता हुआ दुवा को प्राप्त होता है।
जन मिद्धान्त ने कम नेतना को अज्ञानता कहा है. और अज्ञानता में आत्मा के परिणमन के कारण जो दुम्ब हात है उमे कर्मफल चेतना कहा है।