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मम्यक शब्द का अथ दाद है व. सम्यकच शब्द का अयं गड द्रव्य में घद्धा करना है. मो जीव का गद्ध दर्शन. ज्ञान गण में श्रद्धा को मम्यक्त्व
मिथ्या शन्द का अर्थ घर अथवा अगर है व मिथ्यात्व का अर्थ अशुद्ध अगवा विपरीत दन जा में बड़ा करना होता है।
चारित्र वाग्यि ताब्द का प्रय-मामा का प्राने ग्यभाव म परिणमना है। मग आत्मा के हाद दान जान गण प्रधान म्वभाव म परिणमन करने को नारि करत है। मान्द का अंग्रेजी भाषा ने Charact
माना किन्न अग्रजा भागा-भागा नाम धं को जानना ही नहीं नयापम अर्थ या माना अग्रजी भाषा अगमथं है। जगम म. जा कि आज मवंच अन जावा अन पानामा मापाओना अनुगामी है दमो कारण चाम्पिादक क्या ताब्दमा गत अभाव है। मो पनि मपाश्चात्य गगन जब मां नाचन्द के मर जथं का नग जानती. नव आज जगन म प्रामा का माने म्यभाव म परिणमन कमी या जगात नाविम परिणाम करन का पूर्णमः अभाव निश्निन है। व नापि म आत्मा का सामना विवेक अथवा दर्शन-जान मणम प्रात्मा का नमन है।मा आत्मा का परिणमन मार मम्यग्दष्ट कही मंभव है। चतथं गणम्यानमो जीव को गम्यक्त्व की प्रालि यानी है। मंग पूर्व प्रथम नान गणग्थानी म आमा गम्यान्य की प्राप्ति नही कर पाना अयांत मम्यग्दाष्ट्र नहीं बनना ।ग प्रकार तथं गणम्यानवी मिथ्यात्य और गम्यक्त्व का मंद जानना है, अथवा जान और अजान का भंद जानना है । एमा प्रात्मा हो भद विज्ञानी कहना । भेद विज्ञान अर्थात ज्ञान अजान का भेद जानने के उपगन्न हा आत्मा का चारित्र म परिणमना मंभव होना है। अनाव चतुर्थ गम्यानवों आत्मा अविग्न अथवा अमयमी आत्मा कहलाता है.. मा आत्मा नंद विज्ञानी होने पर भी अचारित्रवान ही रहता है। भंदविज्ञान हान पर अयांत ज्ञान और अज्ञान का भेद जानने पर आत्मा का परिणमन मिथ्यात्व में हट सम्यक्त्व में ददता को प्राप्त होने लगता है।
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