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________________ "जबरदस्ती" आत्मा के तीव्र कषायों में परिणमन को जैन सिद्धान्त ने कहा है जबतक आत्मा का तीव्र कषायों में परिणमन न हो तब तक एक व्यक्ति के साथ दूसरा जबरदस्ती कर ही नहीं सकता और जब तक मनुष्य की प्रवृत्ति पांच इन्द्रियों के विषयों को तीव्रता को प्राप्त न हो तब तक ऐसा पुरुष तीव्र कपायों का अवलंबन ही नहीं ले सकता । सोई आज देश ने पाश्चात्य सस्कृति का पदचुम्बन कर, आज का शासन शासक देश को उसी में डुबाने को तत्पर है और स्वयं उसमें भीषणता से डूबा हुआ है । आज शासन सत्य को तो जानता ही नहीं, विवेक उसके पास फटकता ही नहीं, वह तो अपने विषय-कपाय के तुष्टीकरण हेतु मात्र जबरदस्ती की क्रियाओं में संलग्न है और अपने जबरदस्तों के आचरण को बढ़ाता ही जाता है । देश में जबरदस्ती के आचरण का ही बोलबाला है । अस्तु ! जबरदस्ती की क्रिया ही अत्याचार है और इसी क्रिया का आज देश में भिन्न-भिन्न रूपों में बोलबाला है। ऐसे देश को अगर जबरदस्ती की क्रियाओं अथवा अत्याचारों का घर कहें तो तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं होगी । जब शासन हो विवेक रहिन हो जाय और हर समस्या का हल विवेक में नपा सके तो आज का अज्ञानी जन साधारण विवेक में परिणमन कर मके, यह एक असाध्य चर्चा है आज की शिक्षा-दीक्षा सभी के परिणाम और उसको प्राप्त मनुष्य के चिन का परिणमत. मात्र जबरदस्ती की क्रियाओं में पोडिन है । आज मनुष्य विवेक खो चुका है विवेक के परिणमन को प्राप्त ही नहीं । आज अगर शासन विवेक क्या है यह जान अपने आचरण को विवकमय कर सके तभी स्वयं एवं अन्य के सुखों में कारण बन सकता है, अन्यथा नही । तिलोग्राम - सागर ४-७-७३ मलाई मले - ६४ -
SR No.010308
Book TitleJain Siddhanta ke Adhar par Aaj ke Yuga ke Samasyao ka Hal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Malaiya
PublisherDigambar Jain Siddhakshetra Drongiri Trust
Publication Year1973
Total Pages79
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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