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जीवन को मात्र जबरदस्ती क्रिया के आधार पर चलाने में आज तत्पर हो नहीं है किन्तु देवा, मुना व पाया जाता है यह दगा चाहे शासन को कहो चाहे शामन करने वाले शामको को कही नाहे देशवासियों को कही. अपनी-अपनी शनि के अनुमार हर क्षेत्र न पाई जाती है, और दिन प्रतिदिन जबरदस्ती करने को विया र क्षेत्र में बदनी हो जाती है। आज देश में गिक्षालय नो भोगणना में वत्र गा है किन्तु वहां भी हर घडी छात्रों एवं उनके गरओम भाव शिक्षामा के शामको में भी जबर. दम्ती करने की क्रिया का वार वाला है।
एमी पर्गिस्थान म देशवामी जी अन्य गाथ जबरदस्ती नहीं कर मकत है व भीषणना गेम चोमाग के कार । और उनका जोवन नारकीय बनना नला जाना है। दिननादन उनपर भिन्न-भित्र कप म नारकायना. यादी जा रही है। उनका विवफ. ही पर कि वे अपने जीवन को जबरदस्ती को नाकामना में बना मक और मुख एवं मान में अपना टाटा जीवन कानीन बार गक । का नायर यह ना दनक जीवन का गवगानिमय बनाने मलगा है, किन्दा रन, दिन प्रतिदिन जनसाधारण से जीवन का हान्न नाकाम
3.11. पास खान पाने का इन्तजाम हो पाया ना दिन को गनतम यो क कप नही है. और अगर यह भीहोगमा नो जीवन म मोमम र परापाग बनने का झोपी तो बना नही पान । न परिस्थितियों की पणं जानाग के उपगन्न मामन धाग्या देकर उनका मन और मालि देने के बाद, भोपगना मे उनक माथ जब दम्ना टक्म पर टाग गदना हो जाना है, ओर अपनो गक्यानमा उन्द रटने नलाटगे व मदापय के प्रनि उन्हें लाभकर बना मटन लटन मननगर । माई यह मब क्या है, . किमी प्रकार का म अमत्य करने को ममथं नही। शामन म रत मामक वग अपनी-अपनी जबरदस्ती करने की शनि के अनुमार, जबर. दम्नी के आन गण म मनग्न, जब स्वय मग्य और शान्ति का प्राप्त नहीं है नो क्या तमा शामन भी दंग के अमित जनमाधारण का कभी उनक जीवन को मम्स और शान्तिमय बनाने में कारण बन मकंगा' कदापि नहीं। और कारण क्या, 'आज देश व ममार में जबरदम्ना कप क्रिया का ही विवेक का ऋया कहत है. आज मंमार में और विशंपनः भाग्न दंग म टम · जबरदम्नी गन्द का या तो अयं नही जानते अथवा जानने हा भी उमक आचरण म लीन है।