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________________ जबरदस्ती - एक भयंकर संक्रामक बीमारी आज जगन और विशेषत भारतदेश जबरदस्ती की बीमारी से भयंकरना में मक्रामक रूप मे सर्वत्र पीड़ित है। आज जहाँ देखो वहां मनुष्य, अन्य मनुष्य के प्रति अपने अभीष्ट की पूर्ति हेतु जबरदस्ती करता, देखा व पाया जाता है। गुडा गर्दी डकैती. मारपीट अथवा सभी प्रकार के युद्ध चाहे वे मनुष्य मनुष्य के बीच हो अथवा देश-देश के विरुद्ध हो सभी जबरदस्ती की भीषण इच्छा के परिणाम है। यह जबरदस्ती दिन प्रतिदिन शासक एवं शामिन में भी भयंकरता मे बढ़नी हुई दृष्टिगोचर है । देश में सरकारीकरण लाटरी मद्यपेय अध्यादेश और ऐसे अन्य सभी कार्य तो पोते जबरदस्ती के उदाहरण है हो किन्तु भीषणता में जबरदस्ती मे लगाए जा रहे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर मात्र जबरदस्तों के सीमा के द्योतक ही नहीं है किन्तु वे सब कर जबरदस्ती का सीमा को लांघकर नारकीय बन चके है। यह नारकीयता देश का शासन. नोपो बंदूकों फोजी एवं पुलिस के बलपर करना हो जाता है उसका न तो अन्न हो दृष्टिगोचर है और न ही इसे रोकने का शासन के पास कोई उपाय है । इन सब सत्य का एक यहां नतीजा निकलता है कि आज का मनुष्य विवेक को खो चुका है और एसा स्पष्ट है कि आज मनुष्य का लक्ष्य. विवेक ग्रहण करने का जैसे रहा ही नहीं हो । कुछ दिन पूर्व इस जगन के भिन्न-भिन्न भागों में रहने वाले दो राजनीतिज्ञों ने एक देश की दूसरे देश के प्रति जबरदस्ती की सीमा बाधने की चेष्टा तो को और वे परमाणु अस्त्रों का एक दूसरे के बीच निषेधात्मक निर्णय को भी प्राप्त हुए. किन्तु परमाणु अस्त्रों के नए अविष्कारों को रोक उनके प्रयोगों पर भी निषेधना को प्राप्त नहीं हो सके। आज जो निर्णय उनने किया उसका फल दूसरे दिन हो समाप्त हो गया और दूसरे दिन ही सुनने में आया कि चीन देश ने हाइड्रोजन बम बना उसकी प्रयोगात्मक क्रिया की है। इन सब उदाहरणों से पूर्णतः स्पष्ट है कि आज का मनुष्य अपने जीवन को विवेक के आधार पर चलाने को असमर्थ हो चुका है और उस जीवन के संचालन हेतु दिनगन हर क्षेत्र में और विषय में, - ६२ -
SR No.010308
Book TitleJain Siddhanta ke Adhar par Aaj ke Yuga ke Samasyao ka Hal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Malaiya
PublisherDigambar Jain Siddhakshetra Drongiri Trust
Publication Year1973
Total Pages79
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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