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हीनता देश के समृद्धिशाली उतर प्रान्तों में ज्यादा विद्यमान है और ऐसे बहत थोड़े दक्षिण के प्रांत बचे हैं जहां इसने अपने विध्वंसात्मक फल को प्ररूपित न किया हो किन्तु यह सर्व मान्य है कि आचरणहीनता का रोग संक्रामकता से देश में बढ़ रहा है और सब ओर अपना भीषण फल दिखाने में मात्र तत्पर ही नहीं है अपितु दृष्टिगोचर है।
आचरणहीनता क्या है और आचरण क्या है इसको जाने बिना आचरण की हीनता हटना संभव नहीं । आज के विविध रूप शिक्षालय जिन पर अमित धन व्यय हो रहा है. किस प्रकार आचरणहीनता की शिक्षा दे रहे हैं और अगिक्षितों पर भी आवरणहीनता का प्रभाव एव उनका आचरण क्यों होनता को प्राप्त है, यह मबका उत्तर जानने की जब मनुष्य की आज चेष्टा ही नहीं और वह आचरणहोनता किस प्रकार नष्ट हो इसका तो उत्तर भी जानने को आज तत्पर नहीं, अस्तु । ___ विचारों को शुद्धि और अशुद्धि, इस प्रकार आत्मा का परिणमन अथवा आचरण दो प्रकार का होता है । विचारधागा ही मन-वचनकाय की क्रियाओं को निर्धारित करती हैं व तदनुकल मन-वचन और काय को क्रियाएं होती हैं। मोई जब तक विचारों की शद्धि की शिक्षा आज का युवक न पाए और उसको विचार धारा शुद्ध हो, जब तक उसकी मन-वचन-काय को क्रियाए तद्वत न हों, तब तक देश की विघटनात्मक क्रियाओं का रुकना संभव नहीं।
शुद्ध विचारों के आचरण से विषय कपायों से प्रवृत्ति हटती है और जैसे-जैसे विचार गद्ध होते जाते हैं, वैमे-वैसे उस जीवात्मा की शक्ति बढ़ती जाती है उसके ज्ञान गुण का परिणमन आचरण बढ़ना जाता है, और अज्ञानता अविद्या से आचरण परिणमन हटता जाता है। अज्ञानता अविद्या मे हटने पर आत्मा का गद्ध शक्तिगालो आचरण उसी प्रकार बढ़ता जाता है ऐमी आत्माए ही समन्वय संगठन को प्राप्त होती हैं और वह संगठन अविचलित होता है ऐसी आत्माओं का आचरण स्वय की मूग्वी बना, अन्य के सुन्वों में कारण बनता है । किन्तु आज देश की परिस्थिति पूर्णतः विपरीत है और जब तक केंद्रीय विधान सभा स्वयं इस दृष्टिकोण का विश्लेषण कर अपने विपरीत दष्टिकोण का त्याग नहीं करती, तब तक देश को परिस्थिति सुधरे, यह त्रिकाल संभव नहीं, वह तो बिगड़ने को दिशा की ओर भागती ही जाएगी। तिलीग्राम-सागर
imurt मल २-७-७३
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