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________________ आचरणहीनता देश में जितने भी अनेक प्रान्त हैं, उन सबमें, समय-समय पर उन प्रान्तों को विधानमभाएं, स्वयं अपने चने हुए मुख्य मंत्री में जब विश्वास खो देती हैं, तत्फल स्वरूप जो विघटनात्मक क्रियाएँ एवं उनके फल जो नागरिकों को भोगना पड़ते हैं, वे क्रियाएँ एवं उनके फल, मात्र इस परिणाम को स्पष्ट करते हैं कि या तोस्वयं उस व्यक्ति ने "आचरण हीनता" की सीमा लांघ दी है अथवा उन विधान सभाओं के सदस्यों का आचरण का पनन हो गया है अथवा उस प्रान्त के नागरिक-निवासो इतने आचरणहीन हो गए हैं कि वे अपने प्रान्त की विधान सभाओं को ऐसे सदस्य चुनने में समर्थ नहीं जो अपने तथा कथित मार्ग दर्शक मुख्य मंत्री चुनने की योग्यता को प्राप्त हों । यह मब विश्लेषण स्वयं सिद्ध है, आज सर्वत्र मात्र आचरण हीनता का बोलबाला है न तो आज का देशवासी आचरण गब्द का अर्थ हो जानता है और न उसके जानने की चेष्टा ही है और इतने विशाल शिक्षालय जिन्हें विश्वविद्यालय नाम से पुकारते हैं-वे विविध भांति के होने पर भी, न तो आचरण शब्द का अर्थ हो जानते है, और न अपने-अपने स्नातकों को तद्रूप शिक्षा देने में समर्थ है, वे मात्र अविद्या की शिक्षा दे रह हैं और उसी के फलस्वरूप आज के नागरिक का आचरण सर्वत्र देखा व पाया जाता है । __इस प्रकार देश की जनजाति में आचरणहीनता प्रबलता से देश में बढ़ रही है और आज के शिक्षालय उसे बढ़ाते ही जाते हैं। जब तक शिक्षालय यह नहीं जाने कि आचरण शब्द का क्या अर्थ है और जब तक इम गब्द का सत्यार्थ जान, उसको शिक्षा न दें, तब तक त्रिकाल यह सभव नहीं होगा कि देश में ऐमो गभोर घटनाएं घटे कि जो देश के प्रान्तों को विधान सभाओं को भी अपने अवधि काल में स्थिर रख सकें। ऐसो परिस्थितियों में केन्द्र का उस प्रदेश में शासन, इलाज मात्र कहा जा सकता है किन्तु उससे कभी भी उस प्रान्त की आचरणहीनता नष्ट नहीं हो पाती । इसी प्रकार पुनः नए मुख्य-मंत्री को प्रान्त को विधान सभा चुन ले, किन्तु यह परिस्थिति तत्काल डावांडोल हो ध्वस्त हो जाती है क्योंकि आचरणहीनता सर्वत्र सदेव अपना फल देकर हो रहती है। अगर देश के विविध प्रान्तों का विश्लेषण किया जाय तो यह आचरण - ६०
SR No.010308
Book TitleJain Siddhanta ke Adhar par Aaj ke Yuga ke Samasyao ka Hal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Malaiya
PublisherDigambar Jain Siddhakshetra Drongiri Trust
Publication Year1973
Total Pages79
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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