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अर्थात्
अपनी आत्म मता मे भिन्न पंचपरमेष्ठियों में जो भक्ति आदि प्रशस्त . गगरूप परिणाम है वह पुण्य है, और जो पर द्रव्य में ममत्व विषयानुराग अप्रशस्तराग परिणाम है वह पाप है. जो अन्य द्रव्य में नही प्रवते. ऐसा वीतराग शुद्धोपयोग रूप भाव है, वह दुःख के नाग का कारण मोक्ष म्वरूप है. ऐमा परमागम में कहा है।
अतएव हे देश के शासको, गद्ध तत्त्वों एव तथ्यों के जाने बिना, देश के मुख और शांति में आप कभी कारण-निमिन नहीं बन पाओगे।
यदि आप दूसरों से आदर चाहते हो तो उनका आदर करना चाहिए। यदि आप दमरों का अनादर करंगे तो आपको उनमे भी अनादर मिलेगा. और परस्पर प्रवृनिया दक्षिन होती जायगी, जिनका फल हिंसात्मक प्रवत्ति मदैव से हुआ है और हिमात्मक प्रवृनियाँ सदैव दुःग्व देती एवं नाग का बुलाती हैं।
अनाव हे मानव ! अनादर की प्रवृत्ति त्याग सबके साथ आदर भाव को प्राप्त हो; फिर मुग्व और गान्ति में बाधा नहीं ।
तिलीग्राम-मागर १-६-७३
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