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________________ जैसे-जैसे सम्यक्त्व की दवना बढ़ती जाती है और मिथ्यात्व क्षीण होता जाता है । वैसे-वैसे आत्मा चारित्र में ददना को प्राप्त होता जाता है। पाचवे गणम्थान में आत्मा का चारित्र थोड़ा मुधरता है. छठवें गुणग्थान में नारित्र पूर्ण हो जाता है. मानवे गणम्थान में मिथ्यात्व अथवा अजान हटना जाग ही आत्मा के चारित्र की गद्धि व वृद्धि होती जाती है । म गणस्थान में चार घानिया कमो का क्षय और उपगम होने लगता है। इन घानिया कमों का उपगम ग्यारहव गणस्थान में हो जाता है, प्रधान ग्यारहव गणम्यान में वे चार घानिया कम वे अमर हो जाते हैं गालाम नाग्यि माहनीय का उपगम कहते है। वाग्दव गणम्यान म वही चार घानिया कम नाग को प्राप्त होते है अधांत यादव गणम्यान म नाग्यि मोहनीय कर्म का क्षय होना है। यही नार घानिया कम जा कि पुदगल के परमाणुओं का कंध होत है. और आत्मा क. प्रमों में प्रवा कर आत्मा के गद्ध दांन ज्ञान र ण को आनन्दादिन कर आत्मा की अपने पद दान-ज्ञान गण में परिणमन नहीं मन देत नका पूर्णन नारा बाग्दव गणम्यान में होने पर आत्मा गद्ध दर्शन-ज्ञान गण में गद व कार परिणमन करने लगता है और मा आत्मा केवलज्ञानी ही तरहय गणम्यान म नार्थ कर पद पाना है। प्रकार जैन आगम ने नारिय सन्द का विरलपण दिया है हम विश्रण को जाने बिना और उमम घड़ा को प्राप्त हा बिना. आत्मा का नाघि म परिणमन करना मभव नहीं हो सकता। आज जगन म आत्माराम विश्रवण कान जान नम्यक्त्व की प्राप्ति ही नहीं कर पाती. फिर उनका चारित्र म प्रवेगी कम ही नहीं हो मकना । आज जन जगन भी स्वयं अपने द्रव्य धन-आगम की जानकारी के प्रभाव म:म विन्याण का नहीं जानता है । और जब तक सम्यक्त्व की प्राप्ति न हा नापिता बनना ही नहीं है. अन्य मतावलम्बियो की अन्य हो जाने । आज व. जगन म मिथ्यात्व का प्रमार नांदतना भीषण है कि अगर व्यनि अक्ति का म्वय के मत वाला कहे तो अमन्य नहीं होगा । अन आज ममा आर अचारित्रवान है। आज जगन म जहां-जहा जितने विवाद दब जाते है नद्रप जिननी समस्या, उन सभी म आत्मा का मिथ्यात्व को सम्यक्त्व जान आत्मा का मिथ्यान्व म परिणमन करना कपाय के चार भेद है, कांध. मान. माया ओर लाभ। इन चार कपायो में आत्मा के परिणमन का हो मिथ्यात्व कहते है। इन चार कपायों
SR No.010308
Book TitleJain Siddhanta ke Adhar par Aaj ke Yuga ke Samasyao ka Hal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Malaiya
PublisherDigambar Jain Siddhakshetra Drongiri Trust
Publication Year1973
Total Pages79
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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