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से अस्वच्छ कर आकुलताबों के जाल में अपने जीवन का अंत भयंकर शारीरिक व्याषियों सहित नहीं करते? फिर देश का तो क्या संसार का भी शासक बनना, क्या तुम्हारी मूर्खता सिद्ध नहीं हुई ?
तिलीग्राम-सागर ७-४-१९७३
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SR No.
010308
Book Title
Jain Siddhanta ke Adhar par Aaj ke Yuga ke Samasyao ka Hal