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अशुभोपयोग (पाप कुण्ड) संसारी जीव के सामने दो कुण्ड हैं :पहला नरक कुण्ड, दूसरा स्वर्ग कुण्ड ।
संसारी जीव पुरुष, आज प्रति देश में, दो भागों में विभाजित है। पहिला राजावर्ग दूसरा प्रजावर्ग । संसारी जीव-मनुष्य को सदेव प्यास लगती है। सो जो राजा वर्ग है, वह चरवाहा बन कर, प्रजावर्ग को पशुवत् हाँककर नरक कुण्ड की ओर ले जाता है । जो राजा वर्ग है वह स्वयं नरक कुण्ड में जाकर अपनी प्यास बुझाने उसमें डूबा हुआ है और प्रजावर्ग को भी नरक कुंड में ले जाकर; उसको प्यास बुझाने हेतु पटक रहा है।
नरक कुण्ड में प्यास तो बुझ जाती है परन्तु वह क्षणिक काल को ही बुझती है सो जो राजावर्ग है वह अपनी प्यास बुझाने नरककुण्ड में डूबा ही रहता है और जो प्रजा वर्ग है वह यद्वा तद्वा उसमें अपनी प्यास बुझाने में सदैव लगा रहता है।
नरक कुण्ड नो नरक कुण्ड ही है, सो प्याम बुझाते बझाते, उस जीव पुरुष पर नरक कुण्ड के पानी का असर होने लगता है। राजावर्ग शिक्षित होता है और प्रजावर्ग अशिक्षित । मो प्रजावर्ग भीषण शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों से लिप्त हो जाता है। राजावर्ग इन बीमारियों को भगाने हेतु अस्पताल व कचहरियां बना देता है और प्रजावर्ग अपनी शारीरिक एवं मानसिक व्याधियां हटाने हेतु, उनको शरण में जाता है। यह क्रम रहट की घग्यिा समान जीवन पर्यंत चाल है किन्तु न तो नरक कुण्ड से प्यास ही बुझ पाती है और न ही वे अस्पताल एवं कचहरियां व्याधियों को दूर कर पाई हैं। __ और जो राजा वर्ग है वह नरक कुंड को स्वर्ग कुण्ड कहता है, जानता है, मानता है और श्रद्धास्पद है सो नरक कुण्ड की रक्षा हेतु प्रजापर अत्यन्त निर्दयता से कर लगाता है और उन करों द्वारा बड़े-बड़े शिक्षालय स्थापित करता है और उनमें ऐसी शिक्षा देता है कि प्रजावर्ग यह जाने, माने और श्रद्धा को प्राप्त होवे कि नरक कुण्ड ही स्वर्ग कुण्ड है।