________________
सो उन करों का कुछ भाग तो इस प्रकार खर्च कर देता है और उसका विशेष भाग स्वयं खर्च कर लेता है और एक ओर विशेष भाग आधुनिकतम युद्ध की सामग्रियों एवं फौजों पर खर्च करता है ताकि भीषणतम लड़ाइयां लड़ने योग्य वह बना रहे और उस नरक कुण्ड की वह रक्षा कर सके।
राजावर्ग और प्रजावर्ग, दोनों की प्यास निरंतर बढ़ती ही जाती है और नरक कुण्ड से उसकी तृप्ति नहीं होती, तदुत्पादित शारीरिक एवं मानसिक व्याधियां भी बढ़ती ही जाती हैं और अस्पताल, कचहरियां भी बढ़ती जा रही हैं किन्तु व्याधियां घटने की जगह बढ़ती ही जाती हैं, वे व्याधियों को दूर करने में असमर्थ हैं ।
यही आज के जगत् का जीवन है, इसी नरक कुण्ड में प्यास बुझाते बनाते मनुष्य के जीवन का अंत हो जाता है। स्वर्ग कृण्ड की चर्चा रामायण महाभारत में ही धरी रह जाती है ।
इम चर्चा को जेन सिद्धान्त इस प्रकार कहता है, यथा :
"जिस जीव का अशुद्ध चैतन्य विकार परिणाम, इन्द्रिय विषय तथा क्रोधादि कषाय इनमे अत्यन्त गाढ हो, मिथ्या शास्त्रों का सुनना, आर्त. रोद्र ध्यान अशुभ ध्यान रूपमन, पगयी निंदा आदि चर्चा, इनमें उपयोग सहित हो, हिसादि के आचरण करने में महा उद्यमी हो और वीतराग सर्वज कथित मार्ग मे उल्टा जो मिथ्या मार्ग, उसमें सावधान हो, वह परिणाम अशुभोपयोग है।
तिलोग्राम-सागर २६-३-७३
anime minden