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________________ आज का पृथक्तावादिता का युग जितनी भी भाषाएँ हैं उनमें जो शब्द भिन्न-भिन्न प्रकार के चिह्नों द्वारा अंकित होते हैं और उन शब्दों द्वारा जो भी वाक्य अथवा वाक्यांश रूप प्रकट हो अंकित किए जाते हैं, वे सभी शब्द, मनुष्य की विचारधाराओं को अंकित करते हैं; और इन्हीं शन्दों द्वारा विचारधाराएं, एक व्यक्ति द्वाग दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाई जाती हैं। एतदर्थ जैसी-जैसी मनुष्य की विचारधागएँ होतो गई, तद्प शब्दों का केवल निर्माण ही नहीं होता गया. तथापि उन्हीं शब्दों का उपयोग जो पूर्व में किसी विचारधारा हेतु अंकित हुआ था, अब इन्हीं शब्दों का उपयोग भिन्न ही विचारधारा अंकित करने हेतु होने लगा है। आज का युग विषय-कषाय की तीव्रता से बढ़ते हुए आचरण का युग है और जितने भी शब्द भाषाओं की परिधि में अंकित हैं, वे सभी शब्द अपने पूर्व अर्थ को त्याग मात्र आज के विषय-कषाय के तुष्टीकरण हेतु विचारधाराओं को अंकित करने में सचेष्ट हैं, उन्हें अब पूर्व विचारधाराओं को निर्देश करने का हक ही नहीं रहा। ऐसी परिस्थिति में आज मनुष्य, उन्हीं शब्दों द्वारा पूर्वाकित विचारधाराओं को जाने, यह असाध्य बन चुका है। आज विषय-कषायों का पोषक साहित्य भी, अपनी चटक-मटक ले, इतनी भीषण मात्रा में मनुष्य समाज के सामने प्रस्तुत हो रहा है और यह साहित्य भी उसे इतनी तोव्रता से लुभा रहा है कि आज मनुष्य इसी साहित्य के गीत गा रहा है, उसी के द्वारा अंकित विषय-कषाय को विचारधारा को ग्रहण करता, उसी आचरण में डूबा हर ओर दृष्टिगाचर है, उसे विषय-कषाय से पराङ्मुख विचारधाराओं को जानने-देखने, व उनमें श्रद्धा को प्राप्त होने का जीवन पर्यंत अवसर ही नहीं । अस्तु । तिलीग्राम-सागर १७-३-७३ onne unden - ४२ -
SR No.010308
Book TitleJain Siddhanta ke Adhar par Aaj ke Yuga ke Samasyao ka Hal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Malaiya
PublisherDigambar Jain Siddhakshetra Drongiri Trust
Publication Year1973
Total Pages79
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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