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आज का युग
आज न्यायालयों के जो विवादों के निर्णय अंतिम हो, नागरिक को उन्हें मानने के लिए बाध्य किए जाते हैं, वे निर्णय भी महत्त्वहीन हो चुके हैं क्योंकि उन्हीं श्रेणी के अन्य विवादों को हल करने में वे असमर्थ हैं। नागरिक को न्यायालयों के निर्णयों के प्रति कोई श्रद्धा नहीं रही, तथापि विवाद और समस्याएँ भीषणता से बढ़, मनुष्य को जीवन पर्यंत जकड़ती ही जाती हैं। आज के मनुष्य समाज द्वारा स्थापित पालियामेन्टों में, न तो उन सिद्धान्तों के रचने की क्षमता ही है कि जिनके आधार पर, मनुष्य समाज के विवाद घटें और अगर न्यायालय उन सिद्धान्तों की अवहेलना कर, अपने स्वयं के कषायों से प्रेरित हो निर्णय दे, तो ऐसे निर्णय पालियामेन्ट द्वारा रचित सिद्धान्तों के विपरीत तो हैं ही, साथ ही साथ, नागरिक को उन कषायों का फल भोगने को बाध्य होना पड़ता है कि जिनके फलस्वरूप न्यायालय निर्णय देता है। ऐसी परिस्थिति में नागरिक विवादों एवं समस्याओं में उलझा रहे, उन्हें बढ़ाता ही जाए तो आश्चर्य हो क्या ।
विषय - कषाय रहित मागं दर्शन देने वाला, न तो आज दृष्टिगोचर है, और न ही किसी का इसमें विश्वास है कि विषय कषाय की न्यूनता में ही दीर्घकाल संसारी सुख है । अतः आज का युग - विषय - कषायों हेतु, झगड़ों का युग कहें - तो जरा भी अतिशयोक्ति नहीं ।
बालाई मल
तिलीग्राम - सागर १७-३-७३
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