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जैन शासन व नागरिक जैन शासन का साम्राज्य लोक प्रमाण है। जैन शासन, जैन सिदान्तानुकल शासित है। जैन शासन का नागरिक
मिथ्यात्व एवं सम्यक्त्व,
अज्ञान एवं ज्ञान,
सत्य एवं असत्य, का भेद जानता है, और सम्यक्त्व को प्राप्त कर शुद्ध ज्ञान-दर्शन के सत्य आचरण से एक रूप सुखों का भोक्ता है । वह मिथ्यात्व के असत्य आचरण को सर्व दुःखों का कारण जान, उस आचरण का त्याग करता है।
जीव, पुदगल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन छह द्रव्यों का त्रिकालवर्ती स्थान लोक है, इसके बाहिर केवल आकाश है।
हे भव्य पुरुष ! उपरोक्त तत्त्वों को जान उनमें श्रद्धा को प्राप्त हो, शुद्ध दर्शन-ज्ञान में ही आचरण कर । राग, द्वेष, मोह भावों के निमित्त-विषय कषायों को त्याग ।
जैन शासन ही शुद्ध शासन है।
जेन नागरिक ही शुद्ध नागरिक है । जैन नागरिक हो मिथ्यात्व का नाश कर, सम्यक्त्व को प्राप्त करता है, तथा विषय कषाय के त्याग से, सम्यक्त्व-संयम को धारण कर शाश्वत सुखों के भोगने का पात्र होता है । अन्य नहीं ।
ऐसे जैन शासन का शासक
सर्वज्ञ-वीतराग-देव हैं। ऐसे सर्वज्ञ-वीतराग-देव अंतिम तीर्थकर भगवान् महावीर को मेरा द्रव्य-भाव नमस्कार है।
तिलोग्राम-सागर १९-२-७३
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