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समयसार ग्रंथ में व्यवहारनय गुणस्थानवी जीवों की चर्चा करता है, ऐसे जीवों को मसे अजीवता अथवा अचेतनता सहित कहा है।
निश्चय नय से उसने जीव को गुणस्थान रहित सिद्ध जीव, जीवा जीवाधिकार में सिद्ध किया है।
तिलीग्राम-सागर २१-१२-७२
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