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आज संसार में जितनी भी विचारधाराएं क्रियाशील हैं, उन सभी में विषय-कषायों के तुष्टीकरण की विचारधारा प्रमुख एवं सुख शांति की प्राप्ति की विचारधारा को मान्यता को प्राप्त है, किन्तु यथार्थता इससे विपरीत होने से, सुख शांति अतिदूर भागती जाती है; इस विचारधारा को जैन सिद्धान्त अज्ञानता को विचारधारा कहता है। __ मात्र ज्ञान की विचार धारा यथार्थ, परमहितु एवं सुख शांति की विचारधारा है-ऐसा जैन सिद्धान्त कहता है । ___ अतएव कषाय रहित भावों में आत्मा के परिणमन से जीव सुख शांति का भोक्ता है, अन्यथा नहीं ।
आज के जगत् का मनुष्य न तो अत्याचार को जानता है और न ही अत्याचारी को, वह तो मात्र प्रतिकारी भावनाओं से ओत-प्रोत है, जिनके कारण लड़ाइयों को तत्पर हो, लड़ाइयां लड़ता ही जाता है; अन्य कुछ जानता ही नहीं।
फलतः जहाँ देखो वहाँ, अत्याचार बढ़ते ही जाते हैं, वे आगे कभी घटेंगे यह दृष्टिगोचर नहीं। ___ क्या यही सुख शांति का मार्ग है ? यह तो मात्र दुःख अशांति का मार्ग है, अन्य कुछ नहीं।
हे मानव, इस विपरीत दृष्टिकोण को त्याग तू तत्त्वों एवं तथ्यों को तो जानता ही नहीं, इनको जान, उन में श्रद्धा को प्राप्त हो, तभी तेरा आचरण अविपरीतता को प्राप्त होगा।
तिलीग्राम-सागर १८-१२-७२
- Armię nam