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जैन सिद्धान्त दीपिका
४१. पर्याय के दो प्रकार होते हैं : (१) व्यञ्जन पर्याय (२) अर्थ पर्याय
प्रकारान्तर से भी पर्याय के दो प्रकार हैं :
(१) स्वभाव पर्याय (२) विभाव पर्याय
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४२. जो पर्याय स्थूल होता है- सर्वसाधारण के बुद्धिगम्य होता है, जो कालान्तरस्थायी (त्रिकाल-स्पर्शी) होता है और शब्दों के द्वारा बताया जा सकता है, वह व्यञ्जन पर्याय है ।
४३. जो पर्याय सूक्ष्म होता है- सर्वसाधारण के बुद्धिगम्य नहीं होता, जिसके बदल जाने पर भी द्रव्य का आकार नहीं बदलता, जो केवल वर्तमानवर्ती होता है, वह अर्थपर्याय है।'
४४. दूसरे के निमित्त की अपेक्षा न रखने वाली अवस्था को स्वभाव पर्याय कहते हैं ।
४५. दूसरे के निमित्त से होनेवाली अवस्था को विभाव पर्याय कहते हैं।
१. प्रदेशवत्त्व अर्थात् द्रव्य के आकार में होनेवाले परिवर्तन की अपेक्षा से व्यञ्जन पर्याय होता है और अन्य गुणों की अपेक्षा से अर्थ पर्याय होता है । व्यञ्जन पर्याय को द्रव्य पर्याय और अर्थपर्याय को गुणपर्याय कहते हैं, अतएव पर्याय द्रव्य और गुण दोनों के आश्रित होता है।