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जैन सिद्धान्त दीपिका
भेद का अर्थ है-विश्लेषण । वह पांच प्रकार का होता है।
१. उत्कर, जैसे-मूग की फली का टूटना । २. वर्ण, बी-गेहूं आदि का बाटा। ३. खण, जैसे- लोहे के टुकड़े। ४. प्रतर, जैसे --अभ्रक के दल। ५. अनूनटिका, जैसे-तालाब की दरारें।
तम--पुद्गलों का सघन कृष्ण वर्ण के रूप में जो परिणमन होता है, उसे तम कहते है।
पुद्गलों का प्रतिबिम्ब का परिणमन होता है, उमे छाया कहते है।
मूर्य आदि के उष्ण प्रकाण को आतप कहते है। चन्द्र आदि के शीतल प्रकाण को उधांत कहते है। रत्न आदि की रश्मियों को प्रभा कहते है।
ये सब पुदगल के धर्म है, इसलिए इनका पुद्गल के लक्षण के रूप में निर्देश किया गया है।
१६. पुद्गल के दो भद है -- परमाण और स्कन्ध ।
१७. अविभाज्य पुदगल को परमाणु कहते है।
परमाणु का अर्थ है . परम- अणु । परमाणु सर्वमूक्ष्म होता है, अनाव वह अविभाज्य होता है। परमाणु का लक्षण बनाने हा पूर्वाचार्यों ने लिया है.... जो पौदगनिक पदार्थों का अन्तिम कारण, मृथ्म, नित्य, एक ग्म, एक गन्ध, एक वर्ण और दो स्पशंयुक्त होता है और दश्यमान कार्यों के दाग जिमका अस्तित्व जाना जाता है, उसे परमाणु कहते है।