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जैन सिद्धान्त दीपिका ६. जीव और पुद्गलों के विविध संयोगों से बह विविध प्रकार
लोक की इस विविधरूपता को ही सृष्टि कहा जाता है।
१०. जीव और पुद्गल का मयोग अपश्चानुपूर्षिक(पौर्वापर्यशून्य) है।
११. मयोग नीन प्रकार का है
१. कर्म 3. शरीर १. उपग्रह
उपग्रह · आहार, वाणी, मन, उच्छ्वाम-नि:ग्वाम आदि उपकारक क्लिया।
१३. लोक-स्थिति नार प्रकार की है।
जंग....आकाश पर चाय. वायु पर उधि (घनोदधि), उदधि पर पृथ्वी और गधी पर म-म्यावर प्राणी है।
१३. जहां आकाग के अतिरिन. कोर्ट द्रव्य नहीं होता उम भाकाग
को अलोक कहते है।
१४. जो द्रव्य म्पर्श, ग. गन्ध और वणं युक्त होता है, वह पुद्गन्न
जिसमें पूरण .. एकीभाव और गलन ---पृथगभाव होता है, वह पहगल है, यह इमका शाब्दिक अर्थ है।