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जैन सिद्धान्त दीपिका
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व्यवहार - स्थूल दृष्टि ।
शरीर- उत्सर्ग - शरीर को स्थिर करना ।
संघ - गण का समुदाय — दो से अधिक आचायों के शिष्य-समूह | संज्वलन – सूक्ष्म कषाय - क्रोध, मान, माया, लोभ - वीतरागदशा को रोकने वाला कर्म ।
मं पराय सातावेदनीय – कषाययुक्त आत्मा का सातवेदनीय कर्म । संमूमि - गर्भ के बिना उत्पन्न होनेवाले प्राणी ।
सागर - जिसका काल-मान दस कोड़ाकोड़ पल्य हो, वह सागर
है ।
सामायिक - एक मुहूतं तक पापकारी प्रवृत्तियों का त्याग करना ।
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