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जैन सिद्धान्त दीपिका
१५३ २६. वेदना आदि में तन्मय होकर आत्मप्रदेशों के इधर-उधर प्रक्षेप
करने को समुद्घात' कहते हैं।
ममुद्घान सात प्रकार के होते हैं : १. वेदना
५. आहारक २. कपाय
६. नेजम ३. मारणान्तिक ७. केवनी' ४. वक्रिय वेदना-समुद्घात असातवेदनीय कर्म के आश्रित होना है। कपाय-ममुद्घात कपाय मोहकर्म के आश्रित होता है।
मारणान्तिक-समुद्घात अवशिष्ट अन्नमहतं आयुष्य कर्म के आश्रित होता है।
वैक्रिय, आहारक और नजम ममुद्घात क्रमशः वैत्रिय, आहारक और नजम नामकर्म के आश्रित होते हैं।
केवलिसमुद्घात आयुप्य के मिवाय शेप नीन अघात्य कर्मों के आश्रित होता है।
१. ममुद्घान शब्द मम्, उद् और घान, इन नीन शब्दों के योग में
बना है। मम् का अर्थ है एकीभाव, उद् का अर्थ है प्रबलता
और पान के दो अर्थ होते हैं-हिमा करना एवं जाना। मामूहिक Fप में बलपूर्वक आन्मप्रदणों को शरीर में बाहर निकालना या उनका इनम्नत: विक्षेपण करना अथवा कम-पुदगलों का निरण
करना, ममुद्घात का शाब्दिक अर्थ है। २. देखें परिशिष्ट १०