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बन सिवान्त रीपिका
जो उच्छवास-निःश्वास की सूक्ष्म क्रिया बाकी रहती है, वह अवस्था सूक्ष्मकिया है और उसका पतन नहीं होता मतः वह अप्रतिपाति है।
४. समुच्छिन्नक्रियामनिवृत्ति-इसमें वह सूक्ष्म क्रिया भी
विच्छिन्न हो जाती है और उसकी निवृत्ति नहीं होती इसलिए वह अनिवृत्ति है।
४५. आर्त और रौद्र ध्यान तप नहीं हैं।
आर्त और रौद्र ध्येयों में भी मन का एकाग्र-सन्निवेश होता है, अतः शाब्दिक दृष्टि से वे भी ध्यान कहलाते हैं, किन्तु वे ध्येय (चैतन्यविकास) में सहायक नहीं होने के कारण तप की कोटि में नहीं आते।
४६. प्रिय का वियोग और अप्रिय का संयोग होने पर जो चिन्तन की एकाग्र धारा होती है उसे आर्तध्यान कहा जाता है।
प्रिय शब्द आदि विषयों का वियोग होने पर उनके संयोग के लिए और अप्रिय शब्द मादि विषयों का संयोग होने पर उनके वियोग के लिए जो आतुरता या एकाग्रचिन्ता होती है, वह आतध्यान है।
४७. वेदना में-रोग आदि कप्टों में व्याकुल होना और निदान
वैषयिकसुख प्राप्ति के लिए दृढ़ संकल्प करना भी आतध्यान है।