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श्रीकृष्ण-कथा-पूर्वजन्म का स्नेह गया। मैं गोकार्त उसे खोजती-खोजती भरतक्षेत्र के कुरुदेश मे पहुँच गई । वहाँ एक केवलज्ञानी को देखकर मैने पूछा
--सर्वन प्रभु देवलोक से च्यवकर मेरा पति कहाँ उत्पन्न हुआ है ?
- हरिवन के एक राजा के घर ।-प्रभु ने बताया ।
-~-अव मुझे वह पति रूप ने प्राप्त होगा या नहीं ? --मैंने पुन । प्रश्न किया।
-तुम भी स्वर्ग से च्यब कर राजकुमारी होगी और तब वह तुम्हे हाथी से बचायेना, वही तुम्हारा पति होगा। भगवान ने समाधान कर दिया।
इसलिए हे सखी । अव इस स्वयवर से क्या लाभ ? यह कहकर राजकुमारी चुप हो गई। प्रतिहारी वसुदेव को सवोधित करके कहने लगी
कुमार । मैने यह सब वाते राजा को बता दी। इसी कारण स्वयवर मे आये नभी राजाओ को आदर सहित विदा कर दिया गया और स्वयवर नहीं हुआ। आप ने हाथी से राजकुमारी को बचाया है, इस कारण आप ही उसके पति है। चलिए और उसके साथ विवाह कीजिए।
वसुदेव कुमार ने सोचा 'केवली के वचन अन्यथा नही होते' और वे प्रतिहारी के साथ राजमहल मे जा पहुँचे। सोमश्री के साथ राजा सोमदत्त ने उनका विवाह कर दिया। दोनो पति-पत्नी सुख-भोग करने लगे।
--त्रिषष्टि० ८२ -~-वसुदेव हिंडी सोमश्री लभक