SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૬૪ जैन कथामाला भाग ३१ ससुर कुवेर सार्थवाह के साथ लोट गये । राजकुमारी उन्हें जाते देखती रह गई । कुबेर सार्थवाह के घर वसुदेव कुमार भोजन आदि मे निवृत हुए "उसी समय एक प्रतिहारी वहाँ आई और उनसे कहने लगी-कुमार । आपको राजमहल मे बुलाया है, चलिए । - क्यो ? मेरा क्या काम वहाँ ? - वसुदेव कुमार ने पूछा । - आपका ही तो काम है ? – प्रतिहारी ने मुस्करा कर कहा । - स्पष्ट बताओ | - वसुदेव के यह पूछने पर प्रतिहारी कहने लगी - राजकुमारी सोमश्री को स्वयवर मे योग्य पति की प्राप्ति हो जायगी यही विचार करके स्वयंवर की योजना की गई थी किन्तु उसमे • एक विकट बाधा आ पडी । इस कारण स्वयवर हुआ ही नही । -क्यो क्या बाधा आ पडी ? - राजकुमारी ने मौन साध लिया । - मौन का कारण - मर्वाणयति के केवलज्ञान का महोत्सव मनाने हेतु जाते हुए देवो को देखकर सोमश्री को जातिस्मरण ज्ञान हो गया और उसने वोलना बन्द कर दिया । - जातिस्मरण ज्ञान और बोलने का क्या सबध ? - है । आप पूरी बात सुनिये - यह कहकर प्रतिहारी वसुदेव कुमार को बताने लगी राजकुमारी को मौन देखकर सभी चितित हो गये। मैं उसकी दासी भी हूँ और सखी भी। मैने एकान्त मे उससे मौन का कारण पूछा तो वह कहने लगी- 'पिछले जन्म मे महाशुक्र देवलोक मे भोग नाम का देव था । उसने मेरे साथ चिरकाल तक प्रणय किया । हम दोनो मे प्रगाढ प्र ेम हो गया । एक समय वह मेरे साथ नदीश्वर आदि द्वीपो की तीर्थ यात्रा और भगवान का जन्मोत्सव करके अपने स्वर्ग को जा रहा था । हम दोनो ब्रह्म देवलोक तक पहुंचे कि उसका आयुष्य पूर्ण हो
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy