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स्पर्श का प्रभाव
प्रात वसुदेव की नीद खुली तो सोमश्री शैय्या पर नही थी । 'कहाँ चली गई इतने सवेरे " सोचा - सम्भवत जल्दी उठ कर चली गई होगी। कुछ समय और वीता किन्तु सोमश्री नही दिखाई दी । अव उन्हे चिन्ता हुई | इधर-उधर बहुत खोजा, परन्तु सब व्यर्थ | कोई पता नही लगा । दिन व्यतीत हुआ, रात आई । वसुदेव की बेचैनी वढती गई । इस द्विविधा और चिन्ता मे तीन दिन गुजर गए । आखिर राजमहल के कक्ष मे कब तक शोकमग्न वैठे रहते ? उद्विग्न से उठ कर उपवन मे आये ।
उपवन मे देखा तो सोमश्री एक स्थान पर स्थिर चित्त आसन लगाकर बैठी है | समीप जाकर पूछा
- प्रिये । मेरे किस अपराध का दण्ड दिया तुमने ? तीन दिन तक कहाँ खोई रही ?
- नाथ | आपके लिए ही मैने तीन दिन तक मौन व्रत लिया या । अव इस देवता की पूजा करके मेरा पुन पाणिग्रहण करो, जिससे यह नियम पूरा हो जाय । सोमश्री ने उत्तर दिया ।
वसुदेव अपनी प्रिया सोमश्री के इस कथन से भावविभोर हो उठे । उनके हृदय मे विचार आया ' कितना कष्ट सहा है, इसने मेरे लिए । उन्होने वही किया जो सोमश्री ने कहा ।
मदिरा का पात्र देते हुए सोमश्री ने कहा - 'नाथ | यह देवता का प्रसाद है ।' वसुदेव ने वह प्रसाद जी भर कर पिया और सोमश्री ने भी । इसके बाद कादर्पिक देवो के समान दोनो रति सुख मे लीन हो
गए ।
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