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जैन कयामाला भाग ३१ गई है। जैसे ही वह पानी पीकर चली मैने उसकी पूछ पकड ली और बाहर निकल आया। ___ कुएँ मे निकल कर वन मे आया तो वहा यमराज के समान एक भैसा मुझ पर टूट पडा। बडी कठिनाई से एक गिला पर चढा तो वह अपने सीगो से गिला को ही उग्वाउने लगा। तभी यमपाश के समान एक काला भुजग मर्प आ निकला। उसने भैमे को पकडा तो दोनो लडने लगे। मैंने अवसर का लाभ उठाया और वहाँ से निकल भागा। वन के प्रान्त भाग में पहचा तो मेरे मामा के मित्र रुद्रदत्त ने मुझे मंभाला। __ मैं द्रव्यार्थी तो था ही। कुछ दिन बाद रुद्रदत्त के साथ सुवर्णभूमि की ओर चल दिया। मार्ग में ईपुवेगवती नदी को पार करके गिरिकट पहुंच गये और वहाँ से एक वन में । टकण देश मे आकर हमने दो मेढे खरीदे। उन पर बैठकर अजमार्ग तय किया। जब हम लोग एक न्यु ने स्थान पर पहुँच गये तो रुद्रदत्त ने कहा
-अब इन बकरो (मेढो) को मार डालो। -क्यो ?--मैने विस्मित होकर पूछा।
यहाँ से आगे पैदल चल कर बाहर निकलने का रास्ता नही है।
-तव हम लोग वाहर कैसे निकलेगे' रुद्रदत्त ने बताया--
-इन मेढो को मारकर इनका मॉस तो बाहर निकाल कर फेक देगे और इनकी खाल ओढकर वैठ जायेगे। मास लोलुपी भारड पक्षी
१ अजमार्ग ने आशय ऐने नकोर्ण और नीचे मार्ग मे है जहाँ केवल बकरा
(मेटा) ही चल सकता है, हाथी, घोडा, मनुष्य आदि नही । यह मार्ग इतना मकग और नीचा होता है कि मनुष्य मीचा खडा नही हो
नरना।