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________________ ४३ श्रीकृष्ण - कथा - नवकार मन्त्र का दिव्य प्रभाव हमे मास का टुकडा समझकर पजो मे पकडकर ले जायेगे और इस तरह हम बाहर निकल जायेगे । मातुल ( मामा ) के मित्र रुद्रदत्त की योजना सुनकर मै चकित रह गया। मेरी आँखे उन निरीह पशुओ की हत्या की बात सुनकर डवsar आई । रुद्रदत्त ने तब तक अपने मेढ े के पेट मे चाकू मार कर उसका प्राणात कर दिया । उसके आर्तनाद से मेरे आँसू वह निकने । मेरा वाला मेढा भी मुझे कातर दृष्टि से देख रहा था । मैं मन ही मन सोच रहा था कि कितना स्वार्थी है मनुष्य जो धन प्राप्ति के लिए दूसरो का अकारण ही घातक बन जाता है । रुद्रदत्त ने मुझसे कहा -अब देर मत करो, ये चाकू लो ओर मेढ का काम तमाम कर दो । - मैं इसे नही मार सकूंगा । - तो हम लोग निकलेगे कैसे ? - न निकले, यही मर जाये, किन्तु यह हिसा मै नही कर सकता । - तुम मत करो मैं ही इसे मारे देता हूँ । यह कहकर रुद्रदत्त ने मेढ े को पकड़कर अपनी ओर खीचा, मेढ े ने मेरी ओर देखकर पुकार की। मानो मुझ से बचा लेने की प्रार्थना कर रहा हो । मैने दुखी स्वर में कहा - मित्र । मै तुम्हारे प्राण तो नही वचा सकता किन्तु परलोक के 'पाथेय रूप सबल तुम्हे दे सकता हूँ । मै उसे नवकार मन्त्र सुनाता रहा और रुद्रदत्त ने उसे मार डाला । एक सेठ की खाल रुद्रदत्त ने ओढ ली और दूसरे की मुझे उढा दी । मास लोलुपी भारड पक्षी आये और हम दोनो को उठा ले गये । मैं उनके पजे से छूटकर एक तालाव मे जा गिरा । वहाँ से निकला तो सामने एक ऊँचा पर्वत खडा था । और कोई मार्ग न देखकर मै उस
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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