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श्रीकृष्ण - कथा - नवकार मन्त्र का दिव्य प्रभाव
- मैं भी तुम्हारी ही तरह धन का लोभी हूँ । - तुम इस कूप मे कैसे आ पडे ? - इसी त्रिदण्डो ने मुझे गिरा दिया। मुझे भी इसने तुम्हारी ही तरह इस कूप में उतारा था। जब मैंने इसे रम की तबी दे दी तो इसने बजाय मुझे निकालने के इस कुए मे धकेल दिया । इस रस मे पड़े रहने के कारण मेरा माँस गल गया है । इसीलिए कह रहा हूँ कि तुम रस मे हाथ मत डालो | मुझे तु बी दे दो मै भर दूँगा ।
मैने उसे तूवी दे दी और उसने रस भर दिया । तुवी एक हाथ मे लेकर दूसरे हाथ से मैने रस्सी हिला दी । त्रिदण्डी ने रस्मी खीच ली। जैसे ही मै ऊपर पहुंचा तो वह रस-तुबी माँगने लगा। मै पहने ही सतर्क हो चुका था, अत बोला
- पहने मुझे बाहर निकालो तव रस-तुवी दूगा ।
वह मुझमे तुवी माँगता ओर मैं स्वयं को बाहर निकालने की वात कहता । इसी पर बात बढ गई। मैने रम कुए मे ही फेक दिया । क्रोधित होकर त्रिदण्डी ने मुझे माँची सहित ही कुए में धकेल दिया । भाग्य से मै रस मे न गिर कर कुए की पहली वेदी' पर ही गिरा । त्रिदण्डी क्रोध मे पैर पटकता हुआ चला गया ।
वह अकारण मित्र मुझसे वोला
- भाई | दुख मत करो। यहाँ एक 'घो' रस पीने आती है । उसकी पूँछ पकड़ कर निकल जाना। जब तक वह नही आती तब तक प्रतीक्षा करो।
मै उस वेदी पर बैठा नवकार मंत्र जपने लगा । वह पुरुष अपनी आयु पूरी करके मर गया और मैं भी अपने दिन गिनने लगा । इतने मे एक भयकर शब्द मेरे कानो मे पडा । मैं समझ गया कि 'घो' आ
१ वेदी या वेदिका कुए की दीवारों में एक-दो पुरुषों के बैठन नाग्य स्थान को कहते हैं । ये स्थान कुए की सफाई आदि करने के समय पुग्यो के बैठने के काम आता है। उससे सफाई आदि में सुविधा हो जाती है ।