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तापस का बदला
[कस का जन्म
भोजवृष्णि के प्रवजित होने के बाद मथुरा के राजसिहासन पर उनके पुत्र उग्रसेन का राजतिलक हुआ। उग्रसेन की पटरानी का नाम धारिणी था।
एक बार राजा उग्रसेन नगर के बाहर जा रहे थे। वहाँ एकान्त वन मे उन्हे एक तापम दिखाई पडा । उन्होने तापस से महल मे आकर भोजन करने की प्रार्थना की। तापस ने उत्तर दिया
-राजन् ! मै एक मान के अनशन के बाद एक दिन ही भोजन करता हूँ और वह भी एक ही घर मे। दूसरे घर नही जाता। यदि पहले घर मे भोजन मिले तो पुन मासोपवास प्रारम्भ कर देता हूँ।
राजा ने तापस का अभिप्राय समझा और उसे भोजन का निमत्रण दे दिया।
तापस निश्चित तिथि को भोजन के निमित्त आया किन्तु किसी ने उसकी ओर देखा तक नहीं। निराश तापस लौट गया और एक मास का अनगन करने लगा। मथुरा नरेश तो उसे निमत्रण देकर भूल ही गये थे।
मथुरापति पुन उस मार्ग से निक ने तो तापस को देखकर उनकी स्मृति मे निमत्रण की वात कोध गई। राजा ने तापस से अपने अपराध की क्षमा मांगी और पुन निमत्रण दिया । तापम ने भी राजा का निमत्रण सहज रूप से स्वीकार कर लिया।
दूसरे मास भी राजा भूल गया और तापस को भूखा रह जाना पडा।