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जैन कयामाला भाग ३३ -नही तुम्हारे मरते ही यादव कुल की परम्परा नष्ट हो जायनी । वश रक्षा के लिए तुम्हारा जीवन आवश्यक है।
—यह काला मुह लेकर मै जीवित नहीं रहना चाहता।
-किन्तु मैं चाहता हूँ कि तुम जीवित रहो। यह कौस्तुभमणि लेकर पाडवो के पास चले जाओ और द्वारका एव यादवो की स्थिति वता देना । मेरी ओर से कहना कि मैंने पहले उन्हे जो निष्कासित किया था उसके लिए मुझे क्षमा कर । ___ कृष्ण ने उसे कौस्तुभमणि देकर पाडुमथुरा जाने का आदेश । दिया । अग्रज के आदेश से विवश जराकुमार ने मणि ली, वाण निकाला और वहाँ से चल दिया। ___ बाण निकलते ही कृष्ण को अपार वेदना हुई। पूर्वाभिमुख होकर पच परमेष्ठी को नमस्कार किया। कुछ समय तक शुभ भावो का विचार करते रहे, फिर एकाएक उन्हे जोश आया और उनका आयुष्य पूरा हो गया। उनकी आत्मा तीसरी भूमि के लिए प्रयाण कर गई ।
श्रीकृष्ण वासुदेव सोलह वर्ष तक कुमार अवस्था मे रहे, छप्पन वर्ष माडलिक अवस्था मे और नौ सौ अट्ठाईस वर्ष अर्द्धचक्री के रूप मे, इस प्रकार उनका सम्पूर्ण आयुष्य एक हजार वर्ष का था।
१ (क) वैदिक ग्रन्थो मे उनकी आयु १२० वर्ष मानी गई है। चिंतामणि
विनायक वैद्य की मराठी पुस्तक 'श्रीकृष्ण चरित्र' के अनुसार उनका जन्म ३६२- विक्रमपूर्व हुमा और मृत्यु ३००८ वि० पू० मे । वहाँ मृत्यु के स्थान पर तिरोधान माना गया है-इसका
अभिप्राय है देखते-देखते अदृश्य हो जाना। (ख) द्वारका-दाह और कृष्ण की मृत्यु एव यादवो के अन्त के बारे मे
श्रीमद्भागवत मे कुछ भिन्न उल्लेख है. . महाभारत के युद्ध मे अनेक वीर और गुणी यादवो को मृत्यु हो चुकी थी। जो शेप थे वे भी दुर्व्यसनी अनाचारी। वृद्धावस्था के कारण कृष्ण-बलराम का उन मदान्ध यादवो पर प्रभाव भी