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श्रीकृष्ण-कथा-वानुदेव-बलभद्र का अवतान
३३९ बलराम जल लेकर लौटे तो उन्होंने कृष्ण को निश्चल पड़े देखा ।
कम हो गया था। द्वारका के समीप ही नमुद्र और रैवतक पर्वत के मध्य प्रमान क्षेत्र में पिंडारक नाम का स्थान था। वहाँ द्वारकावामी आमोद-प्रमोद के लिए जाया करते थे। एक बार विशालजन्मव हुआ। मद्यपान ने उन्मत्त द्वारकावामी परस्पर लडने लगे और वही मर गए । कृष्ण, वलराम, मारयी दारुक, उग्रमेन, वसुदेव, कुछ स्त्रियाँ और बाल-बच्चे ही जीवित लौटे। इस विनाश लीला ने वे बहुत दुखी हुए उन्होंने प्राण त्याग दिये । श्रीकृष्ण दाल्क के माय द्वारका लौटे । उन्होने दारुक को हस्तिनापुर जाने का आदेश दिया और कहा कि अर्जुन यहाँ आये और अवशेष यादव-वृद्धो और स्त्रियो को हस्तिनापुर ले जाए ।
___ दारुक हस्तिनापुर चला गया और कृष्ण अग्रज वलराम के देहावनान ने दुखी होकर एक पीपल के वृक्ष के नीचे जा बैठे । जराकुमार नाम के व्याध ने उन्हें वाण मारा। कृष्ण ने उसे स्वर्ग प्रदान किया। __इसके पश्चात उनके चरण चिन्हो को देखता हुआ दारुक यहाँ आया। उनके देखते-ही-देखते गरुड चिह्न वाला उनका रथ अन्वो नहित आकाश में उड गया और फिर दिव्य आयुध भी चले गए । सारथी के विस्मय को दूर करते हुए कृष्ण ने कहा--'तुम हारका जाओ और शेप यादवो मे कहो कि वे अर्जुन के साथ चले जायें, क्योकि मेरी त्यागी हुई वारका को नमुद्र अपने गर्भ मे ममेट लेगा।' इसके पश्चात कृष्ण का तिरोधान हो गया।
___ अर्जुन ने द्वारका की दुर्दशा देवी तो वहुत दुखी हुआ। कृष्ण-बलराम तो समाप्त हो ही चुके ये । शेप गदवो, स्त्रियो और अनिरुद्ध के पुत्र वज्र को लेकर हस्तिनापुर चल दिया।
[श्रीमद्भागवत, स्कन्ध ११, अध्याय ३०, श्लोक १०-४८]
द्वारका निर्जन और भूनी होगई । समुद्र मे भयकर तूफान आया और महानगरी द्वारका जलमग्न हो गई।
[श्रीमद्भागवत ११/३१/२३]