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कुन्ती गजारूढ होकर कृष्ण के पास द्वारका नगरी पहुँची । श्रीकृष्ण ने उसका पहले के समान ही आदर किया और आने का कारण पूछा । कुन्ती ने पुत्रो की ओर से क्षमा माँगते हुए कहा - देवानुप्रिय । तुमने पाँचो पाडवो को निर्वासन की आज्ञा दी है । समस्त दक्षिण भरतार्द्र के स्वामी भी तुम्ही हो । अब बताओ कि वे किस दिशा - विदिशा को 'जाएँ ?
कृष्ण ने अपनी सहज, मधुर वाणी मे उत्तर दिया
- वासुदेव, बलदेव, चक्रवर्ती आदि महापुरुषो के वचन अमोघ - होते हैं । अत पाचो पाडव दक्षिण दिशा के वेलातट (समुद्र किनारा ) पर जाये और नई नगरी पाडुमथुरा बसा कर वहाँ मेरे प्रच्छन्न सेवक के रूप मे रहे ।
वासुदेव की इस आज्ञा को सुनकर कुन्ती वहाँ से चली आई और यह आदेश पुत्रो को कड् नुनाया ।
इस आदेश के अनुसार पाँचो पाडव हस्तिनापुर मे चल दिए और दक्षिण दिशा के वेलातट पर पहुँच कर वहाँ नई नगरी पाण्डुमथुरा बसाकर सुखपूर्वक रहने लगे ।
हस्तिनापुर के राज्य पर श्रीकृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा के पौत्र और अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित का अभिषेक कर दिया ।
- त्रिषष्टि० ८/१० -ज्ञाताधर्म०
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