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गजसुकुमाल
दो मुनियो को अपने द्वार पर देखकर देवकी फूली नही समाई। सिह केशरिया मोदको से भक्तिपूर्वक उन्हे प्रतिलाभित किया । मुनि चले गए । देवकी बैठ भी नही पाई कि दो मुनि पुन पारणे हेतु आए। देवकी ने देखा बिल्कुल वैसे ही मुनि है। चित्त मे सगय तो हुआ परन्तु बोली कुछ नही । उन्हे भी भक्तिपूर्वक सिंह केशरिया मोदको से प्रतिलाभित किया और आसन पर बैठकर सोचने लगी। उसे यह विचित्र ही लग रहा था कि जैन श्रमण एक दिन में दो बार एक ही घर मे भिक्षा हेतु आएँ । वह इन विचारो मे निमग्न ही थी कि पुनः दो मुनि विल्कुल वैसे ही द्वार पर दिखाई दिए । देवकी ने उन्हे सिह केशरिया मोदको से प्रतिलाभित करके पूछ ही लिया
-मुने । आप दिग्भ्रमित होकर बार-बार यहाँ आ जाते है। अथवा १२ योजन लम्बी और ६ योजन चौडी समृद्धिशाली द्वारका मे अन्यत्र शुद्ध भोजन नही मिलता ? ____कहने को कह तो गई देवकी किन्तु उसे अपने शब्दो पर पश्चात्ताप होने लगा। उसके हृदय मे विचार आया कि श्रमणो के प्रति ऐसी शका अनुचित है।
मुनियो ने शात-सहज रवर मे कहा
-हम छह भाई है, बिल्कुल एक से । देखने वाले भ्रम मे पड जाते है। आज हम दो-दो के सघाडे मे छट्ठ तप के पारणे हेतु निकले थे । सभवत हम से पहले वे लोग आए हो। •
देवकी की शका का समाधान हो गया। किन्तु एक शका मिटी तो दूसरी ने आ घेरा। उसे अतिमुक्तक मुनि की भविष्यवाणी की स्मृति हो
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