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इसी समय शकेन्द्र ने भगवान अरिष्टनेमि के लिए अपना रथ और मातलि नाम का सारथि भेजा। उसने आकर नमस्कार किया और उन्हे सज्जित करके अमावृष्टि (एक यादव) को सेनापति पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। कृष्ण के कटक मे इस घटना पर इतना प्रबल जयनाद का शब्द हुआ कि जरासध की सेना क्षुभित हो गई।
प्रात काल ही दोनो ओर की सेनाओ मे भयकर युद्ध प्रारम्भ हो गया। रक्त की धाराएँ बहने लगी । जरासव की ओर से कई बार युद्ध नियमो का भग हुआ किन्तु उसके सभी प्रमुख योद्धा-जयद्रथ, रुक्मि, शिशुपाल, कर्ण, दुर्योधन आदि वीरगति को प्राप्त हुए।
दूसरे दिन जरासंध अपने वचे-बुचे वीरो और अपने पुत्रो के साथ युद्धभूमि मे उतरा । उसने वात की वात मे समुद्रविजय के कई पुत्रो को मार डाला । उस समय वह साक्षात काल के समान ही दिखाई पड रहा था। जिधर भी उसकी गदा घूम जाती यादव दल त्राहिवाहि पुकारने लगता । तव तक वलराम ने उसके २८ पुत्रो को मृत्यु की गोद मे मुला दिया। पुत्रो की मृत्यु से तो वह साक्षात आग ही हो गया । वलराम के वक्षस्थल पर भीपण गदा प्रहार किया तो वे रक्त वमन करके कटे वृक्ष की भांति भूमि पर गिर पडे । दूसरा गदा प्रहार करना चाहा तो धनुर्धारी अर्जुन वीच मे आ गया । उसने वाणो की बौछार से उसे रोक लिया । तब तक श्रीकृष्ण ने उसके ६९ पुत्रो को मार गिराया। जरासघ दौडकर कृष्ण के सम्मुख जा पहुंचा और अफवाह फैला दी-'श्रीकृष्ण मारे गए।' इस अफवाह को सुनकर अरिप्टनेमि का सारथी मातलि घवडाया। उसने उनसे प्रार्थना की -
१ (क) शुभचन्द्राचार्य के पाडव पुराण मे अरिष्टनेमि के युद्ध मे सम्मिलित
होने का उल्लेख नही है । सिर्फ इतना ही उल्लेख है कि-नारद से जरासघ के युद्ध हेतु आगमन को जानकर कृष्ण ने उनसे अपनी जय वे सम्बन्ध में पूछा तो भगवान ने मदहास्यपूर्वक 'ओम्' शब्द कहा । कृष्ण अपनी विजय के प्रति आश्वस्त हो गए। (पाडव पुराण १९/१२-१४) (ख) जिनसेन के उत्तर पुराण में भी यही वर्णन है। (७१/६८-७२)