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जैन कथामाला . भाग ३३ स्वर्ग मिलता है जबकि युद्ध से भाग जाने पर लोकापवाद ! अत युद्ध करना ही श्रेष्ठ है।
जरासव डिभक को वात सुनकर सतुष्ट हुआ। डिभक ने ही पुन कहा
-आपके हाथ मे चक्र है और मेरे मस्तिप्क में चक्रव्यूह । मै चक्रव्यूह की रचना करके शत्रु-योद्धाओ को उसमे फंसा लूँगा और आप अपने पौरुप से उनका शिरच्छेद कर दीजिए । बस किस्सा खतम । ____ योजना पसद आई जरासंध को। वह अपनी विजय के प्रति आश्वस्त होकर फूल गया।
दूसरे दिन प्रात काल से ही डिभक ने एक हजार आरे वाले चक्रव्यूह की रचना प्रारभ कर दी। प्रत्येक आरे मे एक-एक महावलवान राजा अवस्थित कर दिया। उसके साथ १०० हाथी, २००० रथ, ५००० अश्व और १६००० पराक्रमी पैदल सैनिक थे। चक्रव्यूह की परिधि मे ६२५० राजा और केन्द्र मे अपने पुत्रो सहित स्वय जरासध ५००० राजाओ के साथ जम गया। उसके पृष्ठ भाग मे गाधार और सैन्धव सेना थी, दक्षिण भाग मे दुर्योधन आदि १०० कौरव, वायी ओर मध्य देश के अनेक राजा और आगे अन्यान्य योद्धा तथा सुभट । इनके आगे शकट व्यूह रचकर प्रत्येक सधिस्थल मे पचास-पचास राजा नियुक्त कर दिये। चक्रव्यूह के बाहर भी विभिन्न प्रकार के व्यूहो की रचना की
और कौगलाधिपति राजा हिरण्यनाभ को सेनापति बनाया। इस सपूर्ण व्यवस्था मे ही दिन व्यतीत होगया।
रात्रि मे यादवो ने गरुडव्यूह की रचना की। व्यूह के मुख भाग पर अर्द्धकोटि महावीर, उनके पीछे वलराम और कृष्ण- और उनके पीछे अक्रू र, जराकुमार आदि यादव, उग्रसेन आदि राजा, दक्षिण भाग मे समुद्रविजय और अरिष्टनेमि आदि पुत्र तथा अन्य राजा, वाम पक्ष मे युधिष्ठिर आदि पाँचो पाडव; तथा पृष्ठ भाग मे भानु, भीरुक आदि अनेक यादवकुमार अवस्थित हो गए। इस प्रकार कृष्ण ने रात्रि मे ही गरुडव्यूह की रचना पूरी कर दी। .