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जैन कथामाला भाग ३२ चेतना शून्य कृष्ण की ओर लपका। वलराम उसकी दुष्टेच्छा समझ गए। विजली की सी फुर्ती से आगे बढकर उन्होंने ऐसा तीव्र प्रहार किया कि चाणूर को सात धनुष पीछे हट जाना पड़ा।
तव तक कृष्ण सचेत हो चुके थे। उन्होने चाणूर को पुन ललकारा और भुजाओ मे कसकर उसे इतने जोर से दवाया कि चाणूर की हड्डियाँ चटख गई । बलपूर्वक उसका मस्तक झुका कर ऐसा वज्रोपम मुष्टिका प्रहार किया कि चाणूर के मुख से रक्त-धारा बह निकली। वह भूमि पर गिर पड़ा और उसकी पुतलियाँ उलट गई। चाणूर के प्राण उसके विशालकाय शरीर से निकल भागे। ___अपने मल्ल की मृत्यु से कस वहुत क्रोधित हुआ । उसने अनुचरो
को आज्ञा दी___-इन दोनो गोप-वालको को मार डालो और इनको पालने वाले नन्द का नाश कर दो।। ___-अरे दुष्ट चाणूर की मृत्यु के पश्चात् भी तू म्वय को मरा नहीं समझता। पहले अपने प्राणो की खैर मना, पीछे किसी के नाश का आदेश देना ।-कुपित स्वर मे कृष्ण बोले और अखाडे से उछल कर कस के पास जा पहुंचे। कस के केश पकडकर उसे सिंहामन से खीच लिया और भूमि पर पटक कर कहने लगे
-पापी | अपनी प्राण रक्षा के लिए तूने व्यर्थ ही गर्भ-हत्याएँ की । अव अपने पापो का फल भोग।
कस हाथी के समान भूमि पर पड़ा था और कृष्ण केशरी सिह के समान उसके समीप खडे थे । यह दृश्य देखकर दर्शको को वडा विस्मय हुमा। तव तक वलराम ने अपनी भुजाओ के बधन मे जकडकर मुष्टिक को श्वासरहित कर दिया। - स्वामी को सकटग्रस्त देखकर कस के अनुचर उसकी सहायता को दौडे। उनकी बाढ को रोका वलराम ने। वे मंडप के ही एक स्तम्भ को उखाड कर उनके सम्मुख खडे हो गए। उस स्तम्भ के प्रहारो से अनेक आयुधो से सुसज्जित अनुचर मक्खियो के समान भाग खड़े हुए।