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'गोकुल का वासी वालक' शब्द सुनकर कस के कान खड़े हो गए। वह समझ गया कि यही वालक कृष्ण है। उसने तुरन्त अपने दूसरे मल्ल मुष्टिक को अखाड़े मे उतरने की आज्ञा दी।
स्वामी की आज्ञा पाकर मुप्टिक अखाडे मे उतर पडा । अव एक ओर कृष्ण अकेले थे और दूसरी दो भीमकाय पहलवान । यह सरासर अधर्म युद्ध था । वलराम इस स्थिति को न देख सके। वे अपने आसन से उछले और सीधे अखाडे मे मुष्टिक के सामने जा खडे हुए, मानो आकाश से मेघ सहित विजली आ गिरी हो। मुप्टिक स्तभित रह गया ।
चाणूर कृष्ण से भिड गया परन्तु मुष्टिक को आगे बढ़ने से वलराम ने रोक दिया। उसे विवश होकर बलराम से युद्ध करना पड़ा।
अब मुप्टिक बलराम से और चाणूर कृष्ण से गुथ गए। वडी देर तक युद्ध होता रहा। न कोई जीता न कोई हारा। कृष्ण-बलराम दे चाणूर और मुष्टिक को एकाएक तृण के पूले के समान उठाया और दूर फेक दिया। साधारण पुरुष होते तो हड्डियाँ चटख जाती किन्तु वे भी मल्ल थे और वह भी विश्व-विख्यात । गिरते ही गेद के समान उछते और सीधे खडे हो गये।
पुन युद्ध होने लगा। -अबकी बार दॉव लग गया मल्लो का। उन्होने दोनो भाइयो को भुजाओ पर उठा लिया और फेकने का प्रयास करने लगे तभी कृष्ण ने एक प्रवल मुष्टिका प्रहार चाणर के वक्षस्थल पर किया । इस वज्र प्रहार से चाणूर खीझ उठा । उसने मल्ल युद्ध के नियम को ताक पर रखकर कृष्ण के उरस्थल (पेट-वक्षस्थल से नीचे का भाग) पर जवरदस्त चूंमा मारा। नाजुक स्थान पर आघात होने से कृष्ण की आँखो के आगे अँधेरा छा गया। विह्वल चाणूर भी हो चुका था। वह कृष्ण को हाथो पर सँभाल न सका और कृष्ण भूमि पर गिर गए। कुछ क्षणो के लिए उनकी चेतना विलुप्त होगई। .
अच्छा अवसर देखकर कस ने चाणूर को सकेत किया कि 'इती समय कृष्ण का प्राणान्त कर दो।' स्वामी की प्रेरणा पाते ही चाणर