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जन कथामाला भाग ३२ आस-पास के लोगो ने वृक्ष गिरने की आवाज सुनी तो दौडे आए। यशोदा का भी ध्यान भग हुआ। उसने देखा कि गिरे वृक्षों के मध्य मे श्रीकृष्ण बैठे है । उमने वढकर शिशु को उठाया। मस्तक पर चुवन किया और प्यार से गोदी मे चिपका लिया । यशोदा के हृदय मे हूक मी उठी-मेरी असावधानी से आज कृष्ण को कुछ हो गया होता
___ लोगो ने भी कृष्ण की कमर मे बँधी रस्सी को देखकर उन्हे दामोदर नाम से पुकारा । सभी लोग उनको अतिवली समझने लगे। पूरे गोकुल मे उनके चमत्कारो की चर्चा होने लगी।
यगोदा ने उस दिन से कृष्ण को एक क्षण के लिए भी ऑखो से ओझल न होने देने का निश्चय कर लिया। अव कृपण सदा ही उसके समीप रहते । वह दही मथकर मक्खन निकालती तो वे मथानी से मक्खन ले-लेकर खाते किन्तु स्नेहनीला यगोदा उनसे कुछ न कहती वरन् उनकी वॉल-क्रीडाओ को देख-देखकर आनन्दित होती। कृष्ण ऑगन मे दौडते-फिरते और यगोदा उन्हे पकडती । कभी यशोदा कही अडोम-पडोस मे किसी कार्यवा जाती तो कृष्ण उसके पीछे-पीछे, कभी उँगली पकड कर और कभी आगे-ही-आगे दीड-दौड कर चलते ।
इस प्रकार की विभिन्न क्रीडाओ मे मगन यशोदा और कृष्ण का समय व्यतीत होने लगा।
कृष्ण द्वारा शकुनि और पूतना का वध वसुदेव से छिपा न रहा। वे अपने लघुवय पुत्र की रक्षा हेतु चिन्तित हो गए। उनके मस्तिष्क मे विचार आया--'मैंने अपना पुत्र छिपाया तो था । किन्तु उसके ये चमत्कारी कार्य अवश्य ही इस रहस्य को प्रगट देगे । तव मुझे किसी न किमी प्रकार इसकी रक्षा करनी ही चाहिए।' ___अनेक प्रकार से विचार करके वसुदेव ने रोहिणी सहित राम (वलभद्र) को लिवा लाने के लिए एक पुरुपं भेजा। उनके आने पर वसुदेव ने अपने पुत्र राम को अपने पास बुलाया और एकान्त मे गुप्त रूप से सब कुछ समझाकर गोकुल जाने की आज्ञा दी।