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श्रीकृष्ण-कथा-~-छोटी उम्र वडे काम
'-पुत्र । कृष्ण देवकी का सातवाँ पुत्र और तुम्हारा छोटा भाई है। इसके छह पुत्रो का विछोह तो पहले ही हो गया है । अब इस सातवे पुत्र की रक्षा का भार तुम पर है।
बलदेव राम ने पिता की आज्ञा को शिरोधार्य करके विनीत शब्दो मे उत्तर दिया
--पिताजी | आप कृष्ण की ओर से निश्चित हो जाइये। मैं उसको रक्षा अपने प्राणो से भी अधिक करूंगा। मेरे रहते माँ देवकी की गोद खाली नही होगी। ___ पिता वसुदेव ने पुत्र के सिर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद दिया
और आलिगन करके उसे विदा करने लगे । वलदेव को देखकर वसुदेव के हृदय से आवाज आई
--अव ये एक और एक दो नही, एक और एक ग्यारह हो गए।
उनके हृदय मे विश्वास हो गया कि बलदेव की उपस्थिति में कृष्ण पूर्ण रूप से सुरक्षित है।
तव तक नन्द और यशोदा भी वहाँ आ गए। वसुदेव ने बलदेव को भी उन्हे अर्पित करते हुए कहा
-नन्द | इस पुत्र को साथ ले जाओ और अपने पुत्र की भॉति ही समझो।
-- 'जो आज्ञा स्वामी ।' कहकर नन्द ने सिर झुकाया और वलदेव तथा यशोदा के साथ गोकुल जा पहुँचे ।
वलदेव अपने छोटे भाई कृष्ण के साथ विभिन्न प्रकार की क्रीडाएँ करने लगे । ज्यो-ज्यो कृष्ण बडे होते गए बलदेव उन्हे भाँति-भॉति की युद्ध विद्याएँ सिखाने लगे। धीरे-धीरे कृष्ण धनुर्वेद आदि सभी प्रकार को युद्ध विद्याओ मे पारगत हो गए ।' उनका वल भी प्रगट
१ (क) हरिश पुराण ३४/६४
(ख) भवभावना २२१७-२२१६