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________________ कंस का छल स्वच्छन्द विहारी मुनि नारद समुद्रविजय की राजसभा मे पधारे। उनके सम्मान में सभी उपस्थित जन खडे हो गए। कस भी उस समय उपस्थित था। सव का अनुकरण करते हुए उसने भी सम्मान प्रकट किया। कुछ समय तक इधर-उधर की बाते करके नारदजी चले गए। तब कस ने महाराज समुद्रविजय से पूछा यह कौन था ? जिसके सत्कार मे आप भी खडे हो गए। समुद्रविजय ने नारद का परिचय वताया-. पहले इस नगर के वाहर यज्ञयशा नाम का एक तापस रहता था। उसकी स्त्री का नाम था यज्ञदत्ता और पुत्र का नाम सुमित्र । सुमित्र की पत्नी थी सोमयगा। कोई जम्भृक देव आयु पूर्ण करके सोमयशा की कुक्षि से पुत्र रूप मे उत्पन्न हुआ। बालक नाम नारद रखा गया। तापस एक दिन उपवास करता था और दूसरे दिन भोजन । एक दिन वह नारद को अशोक वृक्ष के नीचे छोडकर वन मे फल-फूल इकट्ठ करने चला गया। उस समय वह वालक (नारद) जम्भूक देवताओ की दृष्टि मे पडा। उनका पूर्वजन्म का मोह जाग्रत हो गया। वे नारद को उठाकर वैताढ्य गिरि पर ले गए। वहाँ की एक कन्दरा मे बालक का लालन-पालन हुआ। नारद आठ वर्ष की आयु मे प्रजप्ति आदि महाविद्याओ को सिद्ध करके आकागचारी हो गया। यह नारद वर्तमान अवसर्पिणी काल का नौवॉ नारद है और इस भव से इसे मुक्ति प्राप्त हो जायेगी। ___ कस चुप-चाप वैठा सुन रहा था। नारद का पूरा वृतान्त सुनकर उसे पुन उत्सुकता हुई १२३
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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