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जैन कथामाला · भाग ३२ पूर्वक मनाया। पुत्र का नाम रखा गया राम किन्तु वह वलभद्र के नाम से प्रख्यात हुआ।
सवको प्रसन्न करते हुए कुमार वलभद्र बडे हुए। गुरु कृपा एव निर्मल बुद्धि से उन्होने समस्त विद्या और कलाएँ अल्पकाल मे ही मीख ली।
--त्रिषष्टि० १५ -~-उत्तर पुराण ७२।२७८-२९७
विशेष-उत्तरपुराण मे वलदेव, वासुदेव श्रीकृष्ण तथा देवकी के अन्य छह
पुत्रो के पूर्वमव देवकी के पूर्वमवो के साथ ही दिये गये हैं । वहाँ वलदव और वासुदेव के पूर्वमवो के नाम, उनके माता-पिता के नाम और जन्म स्थान मे अन्तर है । सक्षेप मे घटना इस प्रकार है
इसी भरतक्षेत्र के मलयदेश मे पलाशकूट गांव मे यक्षदत्त नाम का एक गृहस्थ रहता था। उसकी स्त्री का नाम यक्षदत्ता था। उनके दो पुत्र हुए यक्ष और यक्षिल । यक्ष क्रू र स्वभाव का था और यक्षिल दयावान । यक्ष वर्तनो मरी गाडी एक अन्वे सर्प पर चला देता है। सर्प मरकर नदयशा नाम की स्त्री हुमा । उसका विवाह कुरुजागल देश के हस्तिनागपुर नगर के राजा गगदेव के साथ हुआ । जव यक्ष का जीव उसके गर्भ मे आया तो राजा उसके प्रति उदासीन हो गया। अत उसने रेवती धाय के द्वारा पुत्र को उत्पन्न होते ही अपनी बहन बन्धुमती के यहाँ पहुँचवा दिया । उमका नाम निर्नामक पडा । माता के दुर्व्यहार से निर्नामक प्रवजित हो गया और उसने स्वयभू वासुदेव की समृद्धि देखकर निदान कर लिया । मरण करके वह महाशक विमान मे देव हो गया। नदयशा भी प्रवजिन हुई । वह भी स्वर्ग गई और वहाँ से च्यव कर देवकी हुई और उमी के गर्भ से निर्नामक ने कृष्ण के रूप में जन्म लिया ।
छोटा भाई यक्षिल भी प्रबजित हुआ और मर कर महाशुक्र देव लोक मे उत्पन्न हुआ वहाँ से च्यवकर रोहिणी के गर्भ से बलभद्र के रूप मे उत्पन्न हुआ।
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