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श्रीकृष्ण - कथा - वलभद्र का जन्म
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- वडे भाई ने तुझे बचा लिया लेकिन मै तेरे ऊपर ही गाडी चलाऊँगा । जब तेरी हड्डी टूटने की कड कड की आवाज मेरे कानो मे पडेगी तो वडा मजा आयेगा ।
नागिन ने छोटे भाई को अपना शत्रु माना ।
जव तक नागिन वचने का प्रयास करती छोटे भाई ने गाडी की गति बढा दी । नागिन पर मे पहिया फिर गया । कड कड हड्डी टूटने की ध्वनि आई और नागिन के प्राण पखेरू उड़ गये ।
साधुजी ने सेठ को सबोधित किया
- सेठजी वह नागिन ही तुम्हारी स्त्री हुई और बडा भाई तुम्हारा वडा पुत्र ललित तथा छोटा भाई गगदत्त । पूर्वभव के वैर के कारण ही सेठानी गगदत्त को देख कर आग बबूला हो जाती है क्योकि पूर्व - जन्म के सम्बन्ध अन्यथा नही होते ।
मुनिराज के मुख से अपने पूर्वजन्म को जान कर ललित ससार से विरक्त हो गया । सेठजी के हृदय मे भी सवेग उत्पन्न हुआ। दोनो पिता-पुत्रो ने सयम ग्रहण किया और कालधर्म पाकर महागुक्र देवलोक मे उत्पन्न हुए ।
कुछ समय पश्चात् गगदत्त ने भी मुनि पर्याय ग्रहण की । अन्त समय माता के अनिप्टपने की स्मृति करके विश्ववल्लभ ( भरत क्षेत्र का स्वामी) होने का निदान करके मरण किया ।
तपस्या के प्रभाव से गगदत्त भी महाशुक्र देवलोक मे देव वना ।
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आयुष्य पूर्ण करके ललित का जीव वसुदेव की रानी रोहिणी के गर्भ मे अवतरित हुआ । उस समय रोहिणी रानी ने बलभद्र की माता को दिखने वाले चार उत्तम स्वप्न देखे । अनुक्रम से गर्भ काल पूरा हुआ और रोहिणी ने चन्द्रमा के समान शीतलतादायक ओर गौराग पुत्र प्रसव किया ।
राजा समुद्रविजय आदि सभी ने पुत्र जन्मोत्सव वडे समारोह