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जैन कथामाला : भाग ३२
ले गये । गगदत्त को उन्होने नहलाया, धुलाया और प्यार के मरहम से उसके मार के घावो को भरने का प्रयास किया। किशोर गगदत्त भी पिता और भाई के प्यार मे पडकर अपनी मार की पीडा भूल गया।
एक साधु गोचरी के लिए घूमते-फिरते सेठजी के घर आये। पुत्र ने उनसे पूछा
--~-गुरुदेव । गगदत्त पर माता के क्रोध का कारण क्या है ? सेठजी ने भी प्रश्न किया
---मैंने अपने जीवन में कभी भी सेठानी का ऐसा भयकर और रौद्र रूप नही देखा । बडे पुत्र ललित को तो लाड करती है और छोटे पुत्र गगदत्त को देखते ही क्रोध मे जल उठती है, नागिन की तरह वल खाती है।
-नागिन ही तो थी पिछले जन्म मे वह !-गुरुदेव ने बताया।
-ऐसे भयकर वैर का कारण ? सेठजी ने प्रश्न किया तो मुनिराज बताने लगे
एक गाँव मे दो भाई रहते थे-एक बडा और दूसरा छोटा। दोनो भाई गाडी लेकर गॉव से बाहर निकले, लकडी लाने । जगल से उन्होने काट-काट कर लकडी भरी और वापिस गाँव की ओर चल
दिये।
वडा भाई आगे-आगे पैदल चल रहा था और छोटा भाई पीछेपीछे गाडी हॉकता ला रहा था। बड़े भाई को एक सर्पिणी दिखाई दी। उसने छोटे भाई को चेतावनी दी
~यहाँ मार्ग मे सर्पिणी पडी है। गाडी बचाकर हॉकना।
सर्पिणी ने यह सुन कर माना कि बडा भाई मेरा उपकारी और मित्र है।
छोटा भाई गाड़ी लिए आ पहुंचा। उसने सर्पिणी को देखकर कहा---