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जैन कथामाला
भाग ३२
- यह सपूर्ण वृतान्त - नारद का भूत भविष्य आपको कैसे ज्ञात हुआ, किसने बताया ?
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- त्रिकालज्ञानी मुनि सुप्रतिष्ठ ने मुझे यह सब बताया था ।समुद्रविजय ने आगे कहा - किन्तु नारद स्वभाव से ही कलहप्रिय, अवज्ञा से कुपित होने वाला, स्वच्छन्द विहारी, सर्वत्र पूजित और एक स्थान पर न टिकने वाला होता है ।
नारद का यह परिचय जान कस सतुष्ट हुआ ।
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एक वार कस ने वसुदेव को वडे आग्रह और प्रेम से मथुरा बुलाया । उसके आग्रह को वसुदेव ने स्वीकार किया और मथुरा आ गए। कस ने उनका बहुत आदर-सत्कार किया ।
जीवयशा के साथ कस बैठा हुआ वसुदेव से बाते कर रहा था । एकाएक वह वोल उठा
- आपने मुझ पर सदा ही स्नेह रखा है । अव मेरी एक वात और मानिए ।
कहो ।
- मृतिकावती नगरी का राजा देवक मेरा काका लगता है । उसकी पुत्री देवकी से आपको विवाह करना पडेगा ? – कस ने साग्रह. कहा ।
वसुदेव ने अपनी स्वीकृति दे दी । कस हर्षित हो गया। दोनो मृतिकावती नगरी की ओर चल दिये । मार्ग मे उन्हे नारदजी मिले । दोनो ने भली-भाँति उनका सत्कार किया । नारदजी ने पूछा
- तुम लोग कहाँ जा रहे हो ? वसुदेव ने वताया
- अपने सुहृद इस कस के साथ मृतिकावती के राजा की पुत्री देवकी से विवाह करने ।
नारद जी प्रसन्न होकर बोले—
-यह तुम विल्कुल ठीक कर रहे हो। क्योकि विधाता निर्माण