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'लौट के वसुदेव घर को आए
इच्छा पूरी होने में व्यवधान शत्रुता का जनक होता है। सूपंक' भी वसुदेव से शत्रुता का भाव रखता था । एक रात्रि को वह कनकवती के महल से सोते हुए बसुदेव को विद्या वल से ले जाने लगा । मार्ग मे वसुदेव की नीद टूटी तो उन्होने उस पर मुष्टिका प्रहार किया । विह्वल होकर सूर्पक ने उन्हें छोड़ दिया और वे गोदावरी नदी मे जा गिरे। नदी पार करके कोल्लालपुर पहुँचे और वहाँ के राजा पद्मरथ की पुत्री पद्मश्री के साथ विवाह कर लिया ।
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वहाँ से उनका हरण नीलकंठ विद्यावर ने किया किन्तु वह भी मार्ग मे छोड़कर भाग गया । वसुदेव चपापुरी के समीप मरोवर मे गिरे । नगर मे आये तो मत्री ने अपनी कन्या उन्हे दे दी ।
सूर्पक ने वसुदेव का पीछा अव भी न छोडा । उसने उनका पुन. अपहरण कर लिया। फिर मुक्के की चोट से विह्वल हुआ ओर छोड कर भागा । वसुदेव गंगा नदी मे गिर पडे । नदी को पार करके साधारण पथिको के समान एक पल्ली मे पहुँचे । पल्लीपति ने अपनी
१. सूर्पक दिवस्तिलक नगर के विद्याधर राजा त्रिशिखर का पुत्र था । वह विद्य दुवेग की पुत्री मदनवेगा मे विवाह करना चाहता था किन्तु मदन
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वेगा का विवाह वसुदेव से हो गया । इसी कारण वह वसुदेव से शत्रुता
रखता था ।
२ नीलकंठ विद्याधर की शत्रुता का कारण सिंहह प्ट्र की पुत्री नीलयशा थी । उसका भी विवाह नीलकंठ से न होकर वसुदेव से हो गया था ।
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