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[ ३२.] गायोके बाटेमे आग लगजाय तो उन्हें बचाना पाप है। मरतेको बचाना पाप हे आदि-आदि ।
हमारा मुख्य कार्यक्रम है अहिंसा, सत्य आदिका प्रचार करना, मनुष्य-जीवनको नैतिक व मदाचारपूर्ण बनाना. आध्यात्मिकताका उन्नयन करना।
माता-पिताकी सेवा करना पाप है, मरतेको बचाना पाप है. गरीवोंकी सेवा करना पाप हे आदि-आदि वान हमारे मिद्धात प्रचार या कार्यक्रमका विपय नहीं है। समाजकी आवश्यकता को छुडायं, यह न सम्भव है और न हमारा मामान्य उई भ्य । हमारा उद्देश्य सिर्फ इतना ही है कि लोग समाज-धर्म या व्यवहार धर्मको आत्म-धर्म जो कि मोक्षका साधन है, सममनेकी भूल न कर । समाजकी उपयोगिता और आवश्यकताको मोक्षकी दृष्टिसे और मोक्षकी वस्तु-स्थितिको समाजकी हिसे तोलनेकी भूल न करें।
सामाजिक कर्तव्योंका मापदण्ड समाज-दृष्टि और मोक्षकर्तव्योका मापदण्ड आत्म-दृष्टि रह, कोई दुविधा नहीं आती। दुविधा तव आती है, जब दोनोको एक दृष्ठिसे मापाजाता है। __भारतकी सामाजिक व्यवस्थामे संयुक्त परिवारकी प्रथा है। उसे प्रोत्साहन मिले, इस दृष्टिसे माता-पिताकी सेवा करना महान् धर्म, पतिकी सेवा करना पत्नीका धर्म आदि-आदि संस्कार डालेगये किन्तु जिन राष्ट्रोमे पति और पत्नीके समान अधिकार है, वहा 'पति-सेवा धर्म' इस सूत्रका कोई मूल्य नहीं।